प्रवीण राय महल: इससे पहले हमने ओरछा सफरनामे में बात की राम राजा मंदिर की। आज हम बात कर रहें हैं ओरछा की विख्यात कवयित्री और संगीतकारा राय प्रवीण उर्फ पूर्णिमा (पुनिया) के बारे में जिसकी प्रेम-कहानी अधूरी रह गई। आइए जानते हैं द स्टोरी विंडो पर इस प्रेम कहानी के बारे में।
प्रवीण राय महल किसने बनवाया था?
मध्य प्रदेश के ओरछा में एक महल है जिसे राजकुमार (और बाद में राजा) इंद्रजीत सिंह ने 1618 में बनवाया था। इसे उनकी प्रेमिका प्रवीण राय के लिए बनवाया गया था। महल में तीन मंजिलें हैं। दूसरी मंजिल पर एक केंद्रीय हॉल है जिसमें प्रवीण राय के विभिन्न मूड के कई चित्र और चित्रण हैं। महल से जुड़ा एक बगीचा भी है जो दो भागों में विभाजित है। महल में एक बड़ी हवेली है, और उसके साथ-साथ बड़ी खिड़कियों वाले छोटे कक्ष हैं।
प्रीवण राय महल की क्या हैं खासियतें?
महल के अर्ध-भूमिगत ग्रीष्मकालीन कमरे में निष्क्रिय शीतलन का उपयोग करके इसकी हवा को बाहरी तापमान से 10 डिग्री से अधिक ठंडा किया गया है। महल के निर्माण में इस्तेमाल की गई निर्माण सामग्री मुख्य रूप से बलुआ पत्थर और ईंटें हैं। यह दो मंजिल ऊंचा है और जहांगीर महल से उत्तर की ओर स्थित है । दोनों इमारतें चौड़ी सपाट सीढ़ियों वाले पत्थर के रास्ते से जुड़ी हुई हैं। इमारतों के बीच हमाम या शाही स्नानघर हैं, साथ ही भव्य पूर्वी प्रवेश द्वार भी है।
प्रवीण राय महल में अद्भुत कला का प्रदर्शन
इसमें बने चित्र में राय प्रवीण फूल लेकर राजकुमार की ओर चलती हुई प्रतीत होती हैं। कुछ ही दूरी पर घोड़े पर सवार राजकुमार भी अपनी प्रेमिका की तरफ बढ़ता दिखता है, लेकिन दोनों एक-दूसरे से कभी मिल नहीं सके। कहा जाता है कि प्रेम की यह कहानी ओरछा राज्य की सबसे सशक्त कहानियों में से एक है।
इंद्रजीत और राय प्रवीण की प्रेम कहानी
16वीं शताब्दी में ओरछा बड़ा और समृद्ध राज्य था। यहां के राजा मधुकर शाह के तीन बेटे थे। मधुकर शाह ने साल 1572 में तीनों बेटों वीर सिंह, राम सिंह और इंद्रजीत को अलग-अलग जागीर दे दी। इंद्रजीत सिंह कछौआ के जागीरदार थे ,वह अधीनस्थ गांवों का हाल जानने के लिए भ्रमण पर निकलते थे । रात्रि विश्राम के लिए वह जहां रुके हुए थे वहां से आ रही अत्यंत सुरीले संगीत की आवाज से वह मंत्रमुग्ध हो गए। पता लगाने पर मालूम हुआ कि वह एक लोहार की बेटी पुनिया है जो काम करते वक्त गीत गा रही थी । यह आवाज इंद्रजीत सिंह को इतनी भा गई कि वे बार बार वहां जाने लगे ।
एक संगीत समारोह में हुआ मिलना
उन्होंने कछौआ में एक संगीत समारोह करवाया जो असल में पुनिया के लिए ही था लेकिन लोगों को इसकी भनक न लगे इसलिए और भी संगीतकारों को उस समारोह में बुलाया गया। उसकी गायकी सुनकर बड़े बड़े गीतकार चकित रह गए। समारोह समाप्ति पर राजा इंद्रजीत ने प्रसन्न होकर भगवान को चढ़ाई जाने वाली माला पुनिया के गले में डाल उसके आंचल में मिठाई का दौना रख दिया। भोली भाली पुनिया ने इस हार को वरमाला मान राजा इंद्रजीत को अपना पति मान लिया।
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महल में हासिल की शिक्षा
जब राजकुमार ने उसके पिता माधव से संपर्क किया और बेटी को शिक्षा दिलाने की बात कही तो पिता ने गरीबी का हवाला देकर इसके लिए असमर्थता जाहिर की। इस पर राजकुमार ने महल में भेज शिक्षा ग्रहण कराने को कहा । यह खबर आग की तरह फैल गई कि गरीब पुनिया महल में राजशाही व्यवस्था के बीच संगीत-नृत्य शिक्षा लेगी। वह महल में आ गई और उन्होंने उचित शिक्षा ग्रहण कर कवित्त में महारत हासिल कर ली।
राम भजन गाती तो पूरा शहर स्थिर हो जाता
रूप था ही, कविता थी। और उस पर ओरछा के रामराजा मंदिर में राम भजन गाती तो पूरा शहर स्थिर हो जाता। पूरे ओरछा में रायप्रवीण के सौन्दर्य और कंठ की प्रशंसा फैलती चली गयी। और जल्द ही यह बात मुगल सम्राट अकबर के कानों तक पहुँच गई, जिन्होंने राजा इंद्रजीत को आदेश दिया कि वे उन्हें उनके पास भेजें। बाद में उन्होंने मना कर दिया और सम्राट ने तुरंत उन्हें 1करोड़ का भारी जुर्माना लगा दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि वह मुगल दरबार में पेश होने के लिए महान साहित्यकार और उनके गुरु केशव दास के साथ आगरा के लिए रवाना हो गईं।
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अकबर के दरबार में राय प्रवीण की कविता
अकबर के दरबार में राय प्रवीण की कविता , संगीत की प्रतिभा, उनके तीखे जवाब और सुंदरता से सभी चकित हो गए; इतना कि अकबर ने तुरंत फैसला किया कि उसे अपने हरम में शामिल कर लेना चाहिए। राय प्रवीण ने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और कहा कि-
विनती राय प्रवीण की, सुनिए साह सुजान,
झूठी पातर भखत हैं, बायस-बारी-स्वान”
यह सुनते ही दिल्ली में अकबर के दरबार में सन्नाटा छा गया। इतनी हिमाकत! इतनी हिमाकत, और वह भी एक औरत की?
उन्होंने कहा कि केवल एक कुत्ता, कौआ या शाही नौकर ही किसी ऐसी चीज को खाने का आनंद लेगा जिसे किसी और ने चखा हो और जिसे दूषित किया गया हो।
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अकबर ने क्यों की राय प्रवीण प्रशंसा?
उसके साहस और बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर अकबर ने उसकी प्रशंसा की और उसने न केवल उसे राजा इंद्रजीत के पास वापस भेज दिया, बल्कि उसे उत्तम उपहारों से भी नवाजा। अकबर ने राजा पर जो भारी जुर्माना लगाया था या उसके बदले राय प्रवीण को अपने हरम में शामिल करने का आदेश दिया था इस अपमान के चलते राजा ने अपने प्राण त्याग दिए। राय प्रवीण ने लौटने पर राज परिवार का ध्वज झुका देखा तो वे भागकर बेतवा नदी के किनारे पहुंची तब तक इंद्रजीत सिंह की चिता ठंडी हो चुके थी । उन्होंने उस चिता की राख अपनी मांग में भरकर बेतवा में छलांग लगा दी। और इस तरह इस प्रेम कहानी का अंत हुआ।
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जो लोग यह प्रपंच रचते हैं कि स्त्रियों को लिखना या पढ़ना नहीं आता था, उन्हें प्रवीण राय की यह कविता पढ़नी चाहिए, जो प्रेम की, प्रणय की और मिलन की कविता है:
वह लिखती हैं
कूर कुक्कुर कोटि कोठरी किवारी राखों,
चुनि वै चिरेयन को मूँदी राखौ जलियौ,
सारंग में सारंग सुनाई के प्रवीण बीना,
सारंग के सारंग की जीति करौ थलियौ
बैठी पर्यक पे निसंक हये के अंक भरो,
करौंगी अधर पान मैन मत्त मिलियो,
मोहिं मिले इन्द्रजीत धीरज नरिंदरराय,
एहों चंद आज नेकु मंद गति चलियौ!
अभी तक राय प्रवीण पर जिसने भी लिखा है उनकी प्रतिभा को दरकिनार कर उन्हें राजनर्तकी के रूप में ही प्रस्तुत किया है। बेहद दुख की बात है कि उनकी कविताओं का कोई संकलन उपलब्ध नहीं है। इन पर गुणसागर सत्यार्थी द्वारा एक उपन्यास लिखा जा चुका है जिसका नाम है -एक थी राय प्रवीण।
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