रॉबोटिक्स छोड़ बाजरा चुना…और बना डाली करोड़ों की कंपनी!

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उस लड़की को कभी भीड़ में कोई नहीं पहचानता था। गांव की गलियों से आई थी, सिंपल सी पढ़ाई, और परिवार का भी दबाव कि “बिज़नेस लड़कियों का काम नहीं।” लेकिन विशाला रेड्डी वुय्याला के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था।

वो चाहती थी कि बाजरा, ज्वार जैसे देसी अनाज सिर्फ गरीबों की थाली तक न रहें — बल्कि बड़े शहरों के सुपरमार्केट में भी पहुंचे, प्रीमियम पैक में, नई पहचान के साथ।

2021 में, बिना बड़े इंवेस्टमेंट या भारी टीम के, उसने शुरू किया ‘मिलेट बैंक’ — एक ऐसा नाम, जो सुनने में सीधा-सरल लगे लेकिन सोच में बड़ा था।


शुरुआत आसान नहीं थी

शुरू में घर से भी सवाल उठे: “क्यों इतना पढ़-लिख कर भी सिर्फ बाजरा ही बेचना चाहती है?”
ग्राहक भी उलझे: “बाजरा के नूडल्स? ये क्या होता है!”

लेकिन विशाला ने हार नहीं मानी। उसने किसानों से सीधे बात की, उनकी फसल की असली ताकत समझी। छोटे-छोटे गाँव के खेतों से बाजरा और ज्वार उठाकर उसे ऐसे रूप में बदला, जिसे शहर का यूथ भी खाना चाहे: नूडल्स, पास्ता, कुकीज…


तीन साल में बड़ा कमाल

आज मिलेट बैंक का टर्नओवर ₹6 करोड़ से भी ज्यादा हो चुका है।
1000 से भी ज्यादा किसान उसके साथ जुड़ चुके हैं — और वो सिर्फ सामान नहीं बेच रही, बल्कि एक भरोसा भी बाँट रही है: देसी अनाज में भी दम है, बस उसे सही पैकेज चाहिए।

इस सफर में उसने देखा कि गांव की मिट्टी से उठकर भी ग्लोबल एक्सपोर्ट तक पहुँचना मुमकिन है। दुबई जैसे बाजारों में भी उसके प्रोडक्ट जा रहे हैं, और यही उसकी सबसे बड़ी जीत है।


एक लड़की, एक सपना, और बहुत सारा हौसला

विशाला की कहानी सिर्फ टर्नओवर की नहीं है — ये उस भरोसे की कहानी है, जो एक लड़की ने खुद पर रखा।

जब बाकी लोग कह रहे थे, “कौन खरीदेगा बाजरे की कुकीज?”
वो कह रही थी, “लोग तभी खरीदेंगे, जब हम उन्हें सही वजह देंगे।”


क्यों ज़रूरी है ये कहानी?

आज भी छोटे शहरों और गांवों की कई लड़कियाँ ये सोचकर पीछे हट जाती हैं कि मार्केट बड़ा है, मुश्किलें बहुत हैं।
लेकिन विशाला की तरह अगर कोई ठान ले, तो पुरानी सोच और पुराने सिस्टम — दोनों को बदला जा सकता है।


आपका क्या सपना है?

क्या आपने भी कभी ऐसा कुछ सोचा है, जो सबको अजीब लगा हो?
नीचे कमेंट करें — क्योंकि हर बड़ी शुरुआत एक छोटे “क्या हो सकता है?” से ही होती है…


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