Madhya Pradesh के किस जिले में बोली जाती है संस्कृत भाषा?

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एक और जहां पूरे देश में अंग्रेजी बोलने का चलन बढ़ता जा रहा है वहीं दूसरी ओर आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले में एक छोटा सा गांव है, जिसका नाम है ‘झिरी’ । यह गांव पूरे भारत में संस्कृत गांव के नाम से प्रसिद्ध है। इस गांव में सभी लोग संस्कृत भाषा में बात करते हैं।

कहां स्थित है संस्कृत भाषा बोलेने वाला गांव?

इस गांव का नाम है झिरी. यह गांव राजस्थान की सीमा से लगे सारंगपुर विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है ।और राजगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

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करीब हजार लोग बोलते हैं संस्कृत!

इस गांव की आबादी लगभग 1000 के लगभग है , और इस गांव का प्रत्येक व्यक्ति संस्कृत भाषा में बात करता है। हां आप सही पढ़ रहे हैं, इस गांव के बच्चे बच्चे को संस्कृत का ज्ञान है । यहां तक कि हर घर का नाम संस्कृत भाषा में हैं। यहां शादी ब्याह में संस्कृत के गीत गाए जाते हैं। प्रत्येक घर के दरवाज़े पर संस्कृत भाषा में श्लोक लिखे हुए हैं। पूरे भारत में सिर्फ 1% लोग संस्कृत बोलते हैं , वहीं झिरी गांव की पूरी आबादी संस्कृत में बात करती है। संस्कृत सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक है, जिसका प्रमाण हमें ऋग्वेद में मिलता है। नासा ने भी AI और coding की दुनिया में संस्कृत को सबसे लाॅजिकल भाषा माना है।

झिरी गांव के लोगों का कहना है कि उनके गांव में सन् 1978 से लगातार आरएसएस की एक शाखा नियमित रूप से लगती आ रही है । साल 2003 संघ की बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि शाखा के माध्यम से गांव और समाज में परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है।

गांव में कराई गई संस्कृत आचार्यों की व्यवस्था

इसके बाद संस्कृत भारती द्वारा झिरी गांव में एक महिला संस्कृत विद्वान ‘विमला पन्ना’ और एक आचार्य ‘बाला प्रसाद तिवारी ‘ को लाया गया । उनके रहने की व्यवस्था गांव के ही दो अलग-अलग परिवारों द्वारा की गई । इन दोनों के द्वारा साल 2004  से नियमित संस्कृत पढ़ाना शुरू कर दिया गया , इसके बाद गांव के सभी लोग संस्कृत भाषी हो गए ।

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विमला पन्ना और बाला प्रसाद तिवारी की मेहनत का परिणाम जल्द दिखने लगा और देखते-देखते गांव के लोगों ने संस्कृत में बात करना शुरू कर दिया । झिरी गांव के लोगों ने संस्कृत भाषा को पूरी तरह अपना लिया है ।इस गांव के लोगों को यह भाषा मीठी लगती है । इस भाषा में बातचीत करने से अपनापन लगता है। हर शाम गांव में नियमित रूप से संस्कृत की कक्षा लगती है । गांव के सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ाने वाले शिक्षक बच्चों को संस्कृत पढ़ाते हैं ।

इस गांव के सभी उम्र के लोग एक दूसरे के साथ संस्कृत में बातचीत करते हैं। और इस तरह यह गांव पूरे भारत भर में अपनी एक अलग पहिचान बनाए हुए है। सही कहा गया है – जहां चाह वहां राह।

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