Orchha Raja Ram Temple: कुछ लोग कहते हैं कि सबसे पहले लोगों ने बुंदेलखंड में रहना शुरू किया था। यही वजह है कि इस इलाके के हर गांव और शहर के पास सुनाने को कई कहानियां हैं। बुंदेलखंड की खूबसूरत और दिलचस्प जगह है ओरछा। ओरछा झांसी से लगभग आधे घंटे की दूरी पर स्थित है। ओरछा निवाड़ी जिले का मुख्यालय है। आइए जानते हैं द स्टोरी विंडो पर राम राजा मंदिर का इतिहास।
क्या है ओरछा इतिहास?
ओरछा का इतिहास 15वीं शताब्दी से शुरू होता है, जब इसकी स्थापना रुद्र प्रताप सिंह जूदेव बुन्देला ने की थी जो सिकन्दर लोदी से भी लड़े थे ,वह बुंदेला राजवंश से संबंधित राजपूत शासकों में से एक थे, और बुंदेलखंड के जिले पर शासन करते थे। 18 वीं शताब्दी में, शक्तिशाली मराठा सेनाएं ओरछा को छोड़कर बुंदेला के सभी राज्यों पर कब्जा करने में सफल रहीं थी। 1783 में, टिहरी (टीकमगढ़) को ओरछा की राजधानी बना दिया गया। 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में ओरछा बुंदेलखंड क्षेत्र में सबसे प्राचीन और समृद्ध राज्य था और अंत में स्वतंत्रता के बाद, ओरछा वर्ष 1956 से मध्य प्रदेश राज्य का हिस्सा बन गया।
ओरछा भारत का महत्वपूर्ण हिस्सा
ओरछा भारत का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो बुंदेला युग का स्मरण कराता है। ओरछा को इतिहास शौकीनों के घूमने के लिए मध्यप्रदेश की सबसे अच्छी जगहों में से एक माना जाता है। जब भी आप ओरछा घूमने जायेगें तो आपको यहां विभिन्न ऐतिहासिक जगहें , मंदिर, किले और अन्य टूरिस्ट अट्रेक्शन देखने को मिलेंगें, जो हर साल हजारों पर्यटकों की मेजबानी करता है। ओरछा के महलों और मंदिरों की मध्ययुगीन वास्तुकला फोटोग्राफरों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
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ओरछा के राम राजा मंदिर का इतिहास
अब बात करते हैं यहां की सबसे प्रसिद्ध और पवित्र स्थली राम राजा मंदिर ओरछा की। राम राजा मंदिर देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर वर्षों पहले मधुकर शाह के लिए एक महल था, जिसे बाद में भगवान राम के भव्य मंदिर के रूप में परिवर्तित कर दिया गया । इस मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ था। हल्के-धूमिल लाल रंग की गुंबदों वाला यह भवन ओरछा के बुंदेला शासक मधुकर शाह की रानी कुंवर गणेश का महल था। ओरछा का यह मंदिर इंडो वेस्टर्न शैली में एक चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है।
क्या है राम लला मंदिर से जुड़ी कहानी?
इस मंदिर से एक दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार ओरछा के शासक मधुकरशाह, कृष्ण भक्त थे, जबकि उनकी महारानी कुंवर गणेश, राम उपासक । इसके चलते दोनों के बीच अक्सर विवाद भी होता था। एक बार मधुकर शाह ने रानी को वृंदावन जाने का प्रस्ताव दिया पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक उसे अस्वीकार करते हुए अयोध्या जाने की जिद कर ली, तब राजा ने रानी पर व्यंग्य किया कि अगर तुम्हारे राम सच में हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ।
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रानी कुंवर गणेश ने क्यों लगाई सरयू नदी में छलांग?
रानी कुंवर गणेश ने राजा राम को अयोध्या से ओरछा लाने के लिए अयोध्या में सरयू नदी के तट पर 21 दिनों तक तप किया । जब राम भगवान के दर्शन नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी, जिसके बाद नदी के जल में ही राम जी की मूर्ति उनकी गोद में आ गई थी । कहते हैं रानी कुंवर गणेश के सामने भगवान राम ने तीन शर्तें रखी थी उनमें एक शर्त यह थी कि मैं जहां बैठ जाऊंगा वहां से उठूंगा नहीं। दूसरी, ओरछा के राजा के रूप विराजमान होने के बाद किसी दूसरे की सत्ता नहीं रहेगी। तीसरी शर्त यह थी कि वह बाल रूप में एक विशेष पुष्य नक्षत्र में साधु-संतों को साथ लेकर पैदल जाएंगे।
राजा ने महल को मंदिर में बदल दिया
मंदिर में एक दोहा लिखा है कि रामराजा सरकार के दो निवास हैं। ‘खास दिवस ओरछा रहत हैं रैन अयोध्या वास।’मंदिर में स्थापित करने से पहले मधुकर शाह, भगवान की मूर्ति को महल में लेकर आए उसके बाद वह मूर्ति वहां से नहीं हिली और वहीं स्थापित कर दी गई । तब राजा ने महल को मंदिर में बदल दिया।
तोपों से सलामी दी जाती
इस मंदिर में भगवान श्री राम की ईश्वर की तरह नहीं, एक राजा के रूप में पूजा की जाती है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर एक तोप है , मंदिर के खुलने और बंद होने के समय तोपों से सलामी दी जाती थी। अब भी यह परंपरा कायम है , मंदिर में सशस्त्र सैनिक बलों द्वारा बंदूकों से सलामी दी जाती है। इस मंदिर में भगवान राम अपने पूरे दरबार के साथ विराजते हैं। लोगों में इस मंदिर की इतनी महिमा और श्रद्धा है कि ओरछा में किसी के घर कोई शुभ कार्य या शादी होती है, तो पहला निमंत्रण पत्र राजा राम को ही दिया जाता है। यह मंदिर आज देश भर के श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।
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