Jhabua Gudiya:सुनने में यह भले ही अजीब लगे कि झाबुआ की आदिवासी गुड़िया विदेश में धूम मचा रही है, लेकिन इन दिनों ऐसा ही कुछ हो रहा है। आदिवासी कलाकारों के द्वारा बनाई जाने वाली इस गुड़िया की दुबई और स्विटरलैंड सहित अन्य देशों में भी डिमांड है। दोस्तों आइए जानते हैं द स्टोरी विंडो पर झाबुआ की आदिवासी गुड़िया के बारे में।
क्या है Jhabua Gudiya?
झाबुआ जिले में आदिवासी एकल गुड़िया, आदिवासी जोड़ा, आदिवासी समूह को उनके औजारों के साथ दर्शाते हुए गुड़िया बनाने का कार्य किया जाता है यह Jhabua Gudiya के अनेक स्थानीय कलाकारों द्वारा बनाई जाती है। ये आदिवासी अंचल के पहनावे और परिवेश को जानने का एक अच्छा माध्यम है।
कैसे होता है आदिवासी गुड़िया का निर्माण?
Jhabua Gudiya कला के निर्माण समय के संदर्भ में अनेक भ्रांतियां हैं । इसके प्रारंभिक समय की भ्रांति में एक यह भी है कि
सर्वप्रथम आदिवासियों ने अपने तात्कालिक राजा को उपहार स्वरूप शतरंज भेंट किया था। जिसमें शतरंज के मोहरों को तात्कालिक परिवेश में उपलब्ध संसाधनों द्वारा आकार दिया जा कर अनुपम कलाकृति का रूप दिया गया ।
Facebook: https://www.facebook.com/profile.php?id=61560912995040
शतरंज के मोहरों जैसे राजा, वजीर, घोड़ा, हाथी, प्यादे इत्यादि को कपड़े की बातियां लपेट लपेट कर बनाया गया था। और तभी से इसे रोजगार के रूप में अपनाए जाने पर बल दिया जाने लगा । और आदिवासी स्त्री पुरुषों को इसका प्रशिक्षण दिए जाने की शुरुआत की गई और गुड़िया निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई ।
You Tube Link: https://www.youtube.com/@TheStoryWindow_1
आज गुड़िया का जो स्वरूप है वह गिदवानी जी का प्रयोग है । प्रारंभिक स्वरूप में वेश-भूषा तो वहीं थी जो आदिवासियों की वेशभूषा है । केवल तकनीकी और आकार में परिवर्तन हुआ है।
गुड़िया बनाना कितना आसान?
जब आदिवासी हस्तशिल्प से संबंधित विशेषज्ञों से बात की गई तो निष्कर्ष यही निकला कि व्यवसायिक स्वरूपों के कारण अब स्टफ्ड डाल का निर्माण किया जाए । इस विधि द्वारा आसानी से गुड़ियों की कई प्रतियां कम परिश्रम और कम समय में आसानी से तैयार की जा सकती हैं।
ये भी पढ़ें: रॉयटर्स का एक्स एकाउंट बंद! सरकार बोली ‘हम जिम्मेदार नहीं’, क्या कह रहे हैं लोग?
हस्तशिल्प कला को मिल रहा है बढ़ावा
आदिवासी बाहुल्य जिले की आदिवासी हस्तशिल्प कलाओं को संरक्षित और संदर्भित करने का काम करने वाले रमेश परमार और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती शांति परमार का देश की राजधानी दिल्ली से साल 2023 में पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयन किया गया। इस गुड़िया कला का उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों को सृजित करना , व्यवहारिक शिक्षा को प्राथमिकता देना, एवं आदिवासी सामाजिक ,सांस्कृतिक , एवं धार्मिक पहलुओं को शामिल करना रहा है।
सम्पर्क सूत्र: प्रिय मित्रों अगर आप हमारे साथ अपनी और आसपास की कहानियां या किस्से शेयर करना चाहते हैं तो हमारे कॉलिंग नंबर 96690 12493 पर कॉल कर या फिर thestorywindow1@gmail.com पर ईमेल के जरिए भेज सकते हैं। इसके अलावा आप अपनी बात को रिकॉर्ड करके भी हमसे शेयर कर सकते हैं। The Story Window के जरिए हम आपकी बात लोगों तक पहुंचाएंगे क्योंकि हम मानते हैं कि खुशियां बांटने से बढ़ती हैं।