अंतर्राष्ट्रीय हकलाहट जागरूकता दिवस (ISAD), जो हर साल 22 अक्टूबर को मनाया जाता है, हकलाहट के बारे में जागरूकता फैलाने, गलत धारणाओं को दूर करने और स्वीकृति को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। 2024 में, यह दिन पहले से भी अधिक महत्वपूर्ण है, हकलाने वाले व्यक्तियों की चुनौतियों और सफलताओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए, समाज में समझ और समावेशन को बढ़ावा देता है।
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हकलाहट क्या है?
हकलाहट या तुतलाना एक बोलने की विकलांगता है, जिसमें भाषण की गति और प्रवाह बाधित हो जाती है। इसमें ध्वनियों और शब्दांशों की पुनरावृत्ति, ध्वनियों की लंबाई, या आवाज़ को रोकना शामिल हो सकता है। यह एक न्यूरोडेवलपमेंटल स्थिति है, और लगभग 1% वैश्विक जनसंख्या इससे प्रभावित होती है, यानी लगभग 70 मिलियन लोग। यह बुद्धिमत्ता या आत्मविश्वास से संबंधित नहीं है, और कई महान व्यक्तियों ने हकलाते हुए भी बड़ी सफलता हासिल की है।
2024 की थीम: “आवाज़ों को सशक्त बनाएं, विभाजन को पाटें”
अंतर्राष्ट्रीय हकलाहट जागरूकता दिवस 2024 की थीम है “आवाज़ों को सशक्त बनाएं, विभाजन को पाटें”, जिसका उद्देश्य हकलाने वाले व्यक्तियों को आत्मविश्वास के साथ अपनी आवाज़ व्यक्त करने में मदद करना है। यह थीम समाज से हकलाहट के बारे में मौन तोड़ने और इसे सामान्य बनाने का आह्वान करती है, ताकि हकलाने वाले लोग भी बिना किसी डर के अपनी बात रख सकें।
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ISAD के लक्ष्य
- जनता में जागरूकता फैलाना: ISAD का मुख्य उद्देश्य लोगों को हकलाहट के बारे में शिक्षित करना है। हकलाहट के बारे में कई गलत धारणाएं आज भी मौजूद हैं, जिन्हें तोड़ने की आवश्यकता है।
- खुली बातचीत को प्रोत्साहित करना: हकलाहट के बारे में ईमानदार और खुली बातचीत से इसे सामान्य बनाने में मदद मिलती है। ISAD का मंच जनता को यह सिखाता है कि हकलाने वाले लोगों से कैसे व्यवहार करें, जैसे धैर्य से सुनना और उनकी बात पूरी होने का इंतजार करना।
- भेदभाव को चुनौती देना: हकलाहट के प्रति भेदभाव और पूर्वाग्रह, चाहे वह स्कूलों में हो या कार्यस्थलों में, ISAD हमें यह याद दिलाता है कि हमें सभी के लिए समान अवसर और समझदारी वाला वातावरण तैयार करना चाहिए।
- स्पीच थेरेपी को बढ़ावा देना: हकलाहट के लिए कोई इलाज नहीं है, लेकिन स्पीच थेरेपी मददगार हो सकती है। ISAD इन संसाधनों की उपलब्धता को बढ़ावा देता है, और लोगों को समर्थन प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
हकलाहट से जुड़े मिथक
अब भी हकलाहट के बारे में कई मिथक हैं जिन्हें ISAD 2024 दूर करना चाहता है:
- मिथक 1: हकलाहट का कारण घबराहट या चिंता है।
- तथ्य: चिंता या घबराहट हकलाहट को बढ़ा सकती है, लेकिन यह इसका कारण नहीं है। यह एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है।
- मिथक 2: हकलाने वाले लोग कम बुद्धिमान या सक्षम होते हैं।
- तथ्य: हकलाहट का बुद्धिमत्ता से कोई लेना-देना नहीं है। कई सफल लोग हकलाते हुए भी अपने क्षेत्रों में चमके हैं।
- मिथक 3: हकलाहट को कड़ी मेहनत से “ठीक” किया जा सकता है।
- तथ्य: हकलाहट के लिए कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन स्पीच थेरेपी और समर्थन से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
आप कैसे योगदान कर सकते हैं?
- सोशल मीडिया अभियानों में भाग लें: #ISAD2024, #StutteringAwareness, और #EmpowerVoices जैसे हैशटैग का उपयोग कर सोशल मीडिया पर जागरूकता फैलाएं।
- इवेंट्स में भाग लें या आयोजित करें: विभिन्न संगठनों द्वारा आयोजित वर्कशॉप्स या सेमिनार्स में भाग लें या अपने क्षेत्र में जागरूकता बढ़ाने वाले इवेंट्स आयोजित करें।
- ग्रीन पहनें: हकलाहट जागरूकता के प्रतीक रंग के रूप में हरे रंग का रिबन पहनें। यह जागरूकता फैलाने का सरल तरीका है।
- दान करें: हकलाहट से जुड़े संगठनों को समर्थन देने के लिए दान करें, जिससे अनुसंधान, थेरेपी, और जागरूकता अभियानों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
प्रेरणादायक कहानियों से बदलाव की ओर
कई लोगों ने अपनी व्यक्तिगत हकलाहट से जुड़ी कहानियाँ साझा की हैं, जो दूसरों को प्रेरित करती हैं। इन कहानियों से न केवल समाज में धारणा बदली जा सकती है, बल्कि हकलाने वाले अन्य व्यक्तियों को भी प्रोत्साहन और समर्थन मिलता है।
प्रसिद्ध हस्तियाँ जिन्होंने हकलाहट का सामना किया
- विंस्टन चर्चिल: ब्रिटेन के प्रधानमंत्री, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हकलाहट के बावजूद अपने देश का नेतृत्व किया।
- एड शीरन: विश्व-प्रसिद्ध गायक, जिन्होंने हकलाहट के बावजूद संगीत की दुनिया में बड़ा मुकाम हासिल किया।
- जो बाइडन: अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति, जो अपने जीवन-भर की हकलाहट की लड़ाई को प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
एक समावेशी भविष्य की दिशा में
अंतर्राष्ट्रीय हकलाहट जागरूकता दिवस 2024 हमें इस दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करता है कि हम एक ऐसी दुनिया बना सकें जहाँ हकलाहट को स्वाभाविक रूप से स्वीकार किया जाए। मिथकों को तोड़ते हुए, सहानुभूति को बढ़ावा देते हुए, और हकलाहट से जूझ रहे लोगों को सशक्त बनाते हुए, हम एक ऐसा वातावरण बना सकते हैं, जहाँ सभी बिना किसी भय के अपनी आवाज़ को व्यक्त कर सकें।
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