Hindi Literature: ग्वालियर शहर से ताल्लुक रखने वाली और वर्तमान में नोएडा में रहने वाली आभा श्रीवास्तव अपनी कविताओं और लेखों के लिए जानी जाती हैं। दोस्तों आज द स्टोरी विंडो पर पढ़तें हैं आभा श्रीवास्तव का ये लेख।

पीड़ा का आना लाजिमी है लेकिन पीड़ित होना वैकल्पिक
पीड़ा और आनंद इन दो शब्दों के इर्द-गिर्द मनुष्य जीवन की धुरी घूमती रहती है। मैंने कहीं पढ़ा था कि पीड़ा का आना लाजिमी है लेकिन पीड़ित होना वैकल्पिक। किंतु हम पीड़ित होना अपरिहार्य मान लेते हैं, उसको कोई विकल्प देना हमने कभी उचित नहीं समझा। जब जब पीड़ा का आगमन मनुष्य जीवन में हुआ मनुष्य ने रोना शुरू कर दिया, उस पीड़ा का समाधान जैसे इस संसार में उपलब्ध ही न हो । हमें आनंद की अनुभूति होती है स्वयं को लाचार, बेबस घोषित करने पर । उससे बाहर निकलकर आना असंभव नहीं है, लेकिन हम स्वयं निकलना ही नहीं चाहते।
अंधे धृतराष्ट्र को देखकर गांधारी, स्वयं की आंखों पर पट्टी बांध लेती है उसी प्रकार मनुष्य पीड़ा के आते ही इतना विलाप करता है कि अश्रुओं से उसकी आंखें मुंद जाती हैं, और बुद्धि कुंद हो जाती है । आंखों के मुंदने का कष्ट नहीं है कष्ट है मन के कुंद हो जाने का और फिर मनुष्य आनंद के रास्ते देखना तो दूर की बात है, उनके बारे में विचार तक नहीं कर पाता।
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हम मनुष्य भी गांधारी की तरह ही है , हम चाहें तो धृतराष्ट्र (मन) का सहारा हो सकते हैं और स्वयं का मार्गदर्शन कर सकते हैं, लेकिन नहीं हम आश्रय तलाशने लगते हैं और बोझ रूपी पट्टी कसकर कृष्ण (ईश्वर) को दोष देना प्रारंभ कर देते हैं, कि यदि आप चाहते तो यह सब न होता। हम भूतकाल में देखें तो पाएंगे कि अनगिनत कष्ट आए और चले गए, क्या जीवन रुका? हमने जिनसे दुखड़े रोए , उन्होंने हमारे दुःख कम किए?? आज आनंदित हैं , तब विचार किया कि वह समय कैसे काटा हमने ?? लेकिन फिर भी वक़्त गुज़रता है, गुज़र गया।
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पीड़ित होना अनिवार्य मान लीजिए अथवा अपने समय गुज़ारने के तरीके बदलकर स्वागत करिए उन कष्टों का जो हमें मनुष्य जीवन की सच्चाई से अवगत कराते हैं । गांधारी रूपी पट्टी निकालकर, मार्गदर्शन कीजिए अपने मन में बैठे धृतराष्ट्र का ।
लेखिका- आभा श्रीवास्तव
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