Hindi Literature: अंतर्द्वंद में फंसा आदमी उसी तरह की स्थिति में पहुंच जाता है जिस प्रकार जल बिन मछली!

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Hindi Literature: ग्वालियर शहर की रहने वाली और वर्तमान में नोएडा में रहने वाली युवा लेखिका आभा श्रीवास्तव अपनी कविताओं और लेखों के लिए जानी जाती हैं। दोस्तों आज द स्टोरी विंडो पर पढ़तें हैं आभा श्रीवास्तव का ये लेख। 

अंतर्द्वंद में फंसा आदमी उसी तरह की स्थिति में पहुंच जाता है जिस प्रकार जल बिन मछली!

जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे से लड़ रहा होता है तो हार के साथ साथ कहीं न कहीं जीतने की भी उम्मीद होती है ! किंतु खुद से लड़ना और लड़कर जीत पाना उतना ही मुश्किल होता है जितना खुद के फोड़े को फोड़ना !  
               
                        मन रुपी शरीर में जब अंतर्द्वंद नाम का फोड़ा पनपने लगता है तो उस फोड़े से मवाद रिसता ही रहता है ! न तो हम उसे फोड़ पाते हैं न‌ ही मरहम लगा पाते हैं और इस फोड़े में हृदयाघात रुपी टीस जीवनपर्यंत उठती रहती है! वह कसक इंसान का जीवन मुहाल कर देती है , न जीने देती है न मरने और तब इंसान अधमरी हालत में जीवन व्यतीत करने को मजबूर हो जाता है!

                 मनुष्य इस अधमरी हालत में जिससे भी मिलता है , तो वह अपने इस फोड़े को छिपाने का भरसक प्रयास करता है! पर उसमें रिस रहा मवाद (मानसिक अशांति) आपके घाव का एहसास लोगों को करा ही देता है!

अब इससे आपके उस घाव पर सबसे घातक हमला तब होता है जब लोगों द्वारा आपको उस फोड़े से उबरने की नई नई उक्तियां (नसीहतें) सुझाई जाने लगती हैं ! जब तक आप अनसुनी करते हैं तब तक तो ठीक है,
यदि गलती से सुन भी लेते हैं तो घाव ठीक होने की बजाय और गहरा हो जाता है! तकलीफ तो तब और ज्यादा बढ़ती है जब आप नसीहत देने वाले से उल्टा सीधा न‌ सही, सीधा -सीधा ही कुछ कह बैठते हैं , फिर शुरू होता है आपके जीवन का महासंग्राम !

और धीरे धीरे आप अपने अनमोल रिश्ते खोने लगते हैं ! ज़रूरी नहीं हर हकीम ने गलत ही दवा दी हो , किंतु झेलते झेलते बात कुछ ऐसी हो जाती है कि हम बगुलों के झुण्ड में हंस को पहचानने से इंकार कर देते हैं! या यूं कहिए कि पहचानना चाहते ही नहीं है! इस प्रकार हमारा घाव कभी न ठीक हो पाने की कगार पर पहुंचकर निरंतर रिसता रहता है , हम इसे अपनी नियति समझ इसी प्रकार जीने की आदत डाल लेते हैं !

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          जीवन व्यतीत तो हो जाता है किंतु बोझिल होता है , हम जीते हैं किंतु जिंदा नहीं होते! जिस व्यक्ति को अंतर्द्वंद रूपी फोड़ा खा रहा होता है वह दूसरों का तो छोड़िए एक समय बाद स्वयं का भी नहीं रहता ! इसलिए कोशिश कीजिए इससे बाहर आने की , यदि नहीं निकल पा रहें हैं तो उस हंस की पहचान कीजिए जो दूध और पानी अलग कर सके! मुश्किल है किंतु नामुमकिन नहीं ! नकारात्मक स्थिति के निर्मित होने से पहले हमेशा एक सकारात्मक रोशनी की किरण आपकी ओर बढ़ रही होती है , बस जरूरत होती है उस किरण के आप तक पहुंचने की, उस किरण को पहचानने के लिए एक अच्छे रवैए की ! जिसे आप आसानी से विकसित कर सकते हैं , आप कुछ भी कर सकते हैं , क्योंकि आप मनुष्य हैं ! 

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लेखिका- आभा श्रीवास्तव

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