Gandhi Jayanti 2024: राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी की जयंती के अवसर पर पुलिस मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश, श्री प्रशांत कुमार एवं अन्य वरिष्ठ अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा उनका स्मरण किया गया एवं इस अवसर पर गाँधी जी के प्रिय भजन एवं रामधुन का संगीतमय गायन भी हुआ। आइए जानते है द स्टोरी विंडो पर महात्मा गाँधी जी जुड़े कुछ किस्से।
गाँधी जी का जन्म कब हुआ था?
2 अक्टूबर 1869 को भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पोरबंदर में महात्मा गाँधी का जन्म हुआ। इनके माता-पिता ने उनका नाम मोहनदास करमचंद गाँधी रखा। परन्तु ये अपने कार्यों और विचारों के कारण विश्व भर में महात्मा गाँधी और बापू के नाम से विख्यात हुए। गाँधी जी का जन्म गुजरात के मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता करमचंद गाँधी राजकोट के दिवान थे और उनकी माँ पुतली बाई साध्वी, सरल,कोमल स्वभाव की भक्त महिला थी। महात्मा गाँधी पर उनकी माँ का अधिक प्रभाव था। वे अपनी माँ के सहज सरल जीवंत स्वभाव से अत्यंत प्रभावित थे।
महात्मा गाँधी जी की शिक्षा कहाँ से हुई?
गाँधी जी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा राजकोट से प्राप्त की साथ ही साथ राजकोट से हाई स्कूल भी किया। भावनगर के समलदास कॉलेज में दाखिला लिया परंतु 1885 में पिता की मृत्यु के पश्चात उन्होंने इंग्लैंड जाकर पढ़ाई करने की ठानी। उस समय भारतीय समाज में समुद्री यात्रा वर्जित थी उनके जाति के लोगों ने उनके इंग्लैंड जाने पर आपत्ति जताई और कहा कि यदि वे समुद्री यात्रा करते हैं तो उन्हें जाति से औपचारिक रूप से बहिष्कृत कर दिया जाएगा। बिना विचलित हुए 18 साल के गाँधी जी इंग्लैंड यात्रा के लिए मुंबई रवाना हुए और 4 सितम्बर, 1888 को वो साउथेम्प्टन के लिए यात्रा प्रारंभ की।
ये भी पढ़ें: : Miniature Gold Work में माहिर उदयपुर के इकबाल सक्का,52 विश्व रिकॉर्ड्स बनाने वाले पहले भारतीय
नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई
लंदन में पढ़ाई पूरी करने के बाद गाँधी जी बंबई में अपनी कानूनी प्रैक्टिस करने का फैसला लिया। बंबई में खुद को एक प्रतिष्ठित वकील के तौर पर स्थापित करने में विफल हुए गाँधी जी राजकोट लौट आए यहां फिर से अपने वकील के करियर की शुरुआत की। अप्रैल 1893 में गाँधी जी दादा अब्दुल्ला एंड कंपनी के मिले प्रस्ताव के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका के लिए रवाना हुए। वहां पहुंचने पर उनका सामना सबसे पहले अंग्रेजों के द्वारा फैलाए कुत्सित नक्सलवाद और रंगभेद से हुआ। 31 मई 1893 को गांधीजी प्रिटोरिया जा रहे थे, एक गोरे ने प्रथम श्रेणी गाड़ी में उनकी मौजूदगी पर आपत्ति जताई और उन्हें ट्रेन के अंतिम वैन डिब्बे में स्थानांतरित करने के लिए आदेश दिया। गांधीजी, जिनके पास प्रथम श्रेणी का टिकट था, ने इंकार कर दिया, और इसलिए उन्हें पीटरमैरिट्सबर्ग में ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया।धीरे-धीरे वे अंग्रेजों की गुलामी के दंश तले छटपटाते अफ्रीकी और गिरमिटिया भारतीय मजदूर वर्ग की दयनीय स्थिति से परिचित हुए। उस रात ठंड की मार ने अंतर्मन को कठोर करने का कार्य किया फिर उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में वहां के मूल निवासी तथा भारतीयों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ने का निश्चय किया। इसी संघर्ष से उनका अहिंसक प्रतिरोध अपने अद्वितीय संस्करण, ‘सत्याग्रह’ के रूप में उभरा। आज, गांधी जी की एक कांस्य प्रतिमा शहर के केंद्र में चर्च स्ट्रीट पर खड़ी है।
गाँधी जी ने क्यों एंबुलेंस दल तैयार किया?
गाँधी जी के जीवन उनके दक्षिण अफ्रीका के प्रवास का समय उनके आत्म अन्वेषण का समय था जब उन्होंने खुद को जाना, अपने आपको जानकर उन्होंने इंसानी जीवन की संपूर्ण जीवन प्रक्रिया को जाना। उन्होंने अपनी इच्छाओं और खर्चों में कमी शुरु की। वो स्वयं अपने धोबी बने, अपने कपड़े खुद स्त्री की, अपने बालों को खुद काटना सीखा। स्वयं की मदद से संतुष्ट न होकर उन्होंने एक चैरिटेबल अस्पताल में दो घंटे के लिए एक कंपाउंडर के तौर पर काम किया। गांधी जी ने समझा कि आखिर स्वावलंबी मनुष्य समाज की मूल समस्याओं पर किस तरह कठोर प्रहार कर सकता है।आज आत्मनिर्भर भारत का नारा हमारे प्रधानमंत्री जी द्वारा कई बार उच्चारित किया जाता है वहीं गांधी जी ने अपने युग से आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता को एक सदी पूर्व ही महसूस कर लिया था। गांधी जी कहते थे यदि समाज को बदलना है तो पहले स्वयं को बदलो। यदि देश को स्वावलंबी बनाना है तो पहले हर नागरिक को स्वावलंबी बनना होगा। उन्होंने नर्सिंग और दाई के काम पर भी किताबें पढ़ीं। 1899 में जब बोर युद्ध छिड़ा, तब उन्होंने डॉक्टर बूथ की मदद से 1100 भारतीय स्वयंसेवकों का एक एंबुलेंस दल तैयार किया और इसकी सेवायें सरकार को प्रदान की। गांधी के नेतृत्व में इस दल ने महत्वपूर्ण सेवाएं दीं। गांधी को सबसे खुशी इस बात से हुई की भारतीयों ने भाइयों के रूप में काम किया और धर्म, जाति या संप्रदाय के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर एक साथ खतरों का सामना किया। गांधीजी ने अपने इस कार्य से साबित किया कि धर्म, जाति, नस्ल, रंग में बंटा मनुष्य विपदा ग्रस्त होने पर अपनी इन स्थूल पहचान भुलाकर एक होकर कार्य करे तो किसी भी विपदा-आपदा से सफलतापूर्वक निपटा जा सकता है ।
Facebook link: https://www.facebook.com/profile.php?id=61560912995040
गांधी जी का भारत आगमन
गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से गांधी जनवरी 1915 में भारत लौटे, एक महात्मा के रूप में जिसके पास कोई संपत्ति नहीं थी वे सिर्फ अपने लोगों की सेवा करने की महत्वाकांक्षा को साथ लिए लौटे। हालांकि भारत के बुद्धिजीवियों ने दक्षिण अफ्रीका में उनके कारनामों के बारे में सुना था पर वे भारत में प्रसिद्ध नहीं थे और सामान्य भारतीय “भिखारी के वेश में महान आत्मा” जैसा टैगोर ने बाद में उन्हें बुलाया था, को नहीं जान पाए थे। भारत आने के बाद गांधी ने सबसे पहले भारत जानने समझने के लिए पूरे भारत में यात्रा की अध्ययन किया। पूरे वर्ष घूमने के उपरांत गांधी अहमदाबाद के बाहरी किनारे पर साबरमती नदी के किनारे बस गये जहाँ मई 1915 में उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की। इस आश्रम का नाम उन्होंने सत्याग्रह आश्रम रखा।
गांधी जी के द्वारा भारत में सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत कैसे हुई?
गांधी जी की सत्याग्रही आंदोलनकारी के रूप में शुरुआत बिहार के चंपारण में 1917 में हुई। अंग्रेजी साम्राज्य की नीतियों से त्रस्त नील की खेती करने वाले किसानों के आमंत्रण पर गांधी जी चंपारण बिहार पहुंचे। वहां भूख से बेहाल जनता को देख गांधी जी मन कराह उठा मन में इस अत्याचार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का दृढ़ संकल्प लिया और अंग्रेजी शासन के बार बार नोटिस दिए जाने पर भी उन्होंने चंपारण नहीं छोड़ा। उनके मूक प्रदर्शन ने स्थानीय मैजिस्ट्रेट को बिना जमानत के रिहा करना पड़ा। गांधी जी के द्वारा पहली भूख हड़ताल अहमदाबाद मिल के मजदूरों के समर्थन में 1918 में की। यह गांधी जी का दूसरा सफल आंदोलन था। गांधी जी का तीसरा आंदोलन मार्च, 1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में स्थानीय किसानों के समर्थन में शुरू किया गया था। फसल खराब होने के कारण जिले के किसान अंग्रेजों द्वारा लगाए गए करों का भुगतान करने में असमर्थ थे। गांधी ने एक अहिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया और करों को माफ करने की मांग की। गांधी जी का यह तीसरा सफल आंदोलन था। इसके बाद गांधी जी ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन 1920-21 में चलाया। एक के बाद एक गांधी जी की अहिंसात्मक कार्यवाहियों ने अंग्रेजों की नींद हराम कर दी थी।
गांधी राजनेता नहीं बल्कि समाज सुधारक भी रहे
गांधी जी ने राजनेता के रूप में ही कार्य नहीं किया वरन वे समाज सुधारक के तौर पर भी सक्रिय रहे। अपने आश्रम में उन्होंने समाज के सभी वर्ग को अनुमति दी साथ ही सभी के बीच जातिगत भेदभाव को मिटाने का संदेश दिया। वे भारत की कुरीतियों पर निरन्तर प्रहार करते रहे उन्होंने छुआछूत खत्म करने और जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए देश भर में यात्राएं की।
गांधी जी का जीवन इतना बड़ा और व्यापक है कि उन्हें चंद शब्दों में कहा जाना व्यर्थ की शेखी बघारना है। उनका जीवन एक ऐसी यात्रा है जो मानो राहगीर को बैठे बिठाए रोमांच और श्रद्धा भर सकती है।
सम्पर्क सूत्र– प्रिय मित्रों अगर आप हमारे साथ अपनी और आसपास की कहानियां या किस्से शेयर करना चाहते हैं तो हमारे कॉलिंग नंबर 96690 12493 पर कॉल कर करके या फिर thestorywindow1@gmail.com पर ईमेल के जरिए भेज सकते हैं. इसके अलावा आप अपनी बात को रिकॉर्ड करके भी हमसे शेयर कर सकते हैं। The Story Window के जरिए हम आपकी बात लोगों तक पहुंचाएंगे क्योंकि हम मानते हैं कि खुशियां बांटने से बढ़ती हैं।