Madvi Hidma Encounter News: आखिरकार वह दिन आ गया जिसका इंतजार सुरक्षा एजेंसियां करीब दो दशक से कर रही थीं। भारत सरकार द्वारा एक करोड़ रुपये के इनामी घोषित किए गए और देश के सबसे खतरनाक नक्सल नेताओं में गिने जाने वाले माडवी हिडमा की मौत 18 नवंबर 2025 को एक बड़े एनकाउंटर में हो गई। यह मुठभेड़ आंध्र प्रदेश के घने जंगलों में हुई, जो छत्तीसगढ़, तेलंगाना और आंध्र के सीमाई इलाकों से जुड़ा हुआ इलाका है। कई राज्यों की संयुक्त टीम महीनों से इस समूह की गतिविधियों पर नज़र रख रही थी और आखिरकार यह ऑपरेशन सफल रहा।
हिडमा की मौत सिर्फ एक नक्सली कमांडर के मारे जाने भर की घटना नहीं मानी जा रही है। सुरक्षा विशेषज्ञ इसे पिछले दस साल में नक्सल मोर्चे पर सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक बता रहे हैं। वजह साफ है — हिडमा को संगठन का सबसे चालाक, निर्मम और रणनीतिक दिमाग माना जाता था और उसकी पकड़ तीन राज्यों तक फैली हुई थी।
Madvi Hidma Encounter News:कैसे हुआ ऑपरेशन
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, जिस इलाके में यह मुठभेड़ हुई, वहां पिछले कई दिनों से मूवमेंट देखी जा रही थी। सुरक्षा बलों को अंदाजा था कि इस इलाके में एक बड़ा नक्सली दल मौजूद है, लेकिन यह उम्मीद नहीं थी कि हिडमा खुद वहीं पर होगा। ऑपरेशन शुरू होते ही नक्सलियों की ओर से भारी फायरिंग हुई। जवाब में सुरक्षा बलों ने पूरे इलाके को घेर लिया और कई घंटों की गोलीबारी के बाद कुल सात शव बरामद किए गए। इन्हीं में हिडमा की पहचान की पुष्टि हुई।
बताया गया कि हिडमा के साथ उसकी दो पत्नियाँ और चार बॉडीगार्ड भी मारे गए। यह बात इस ओर इशारा करती है कि वह लंबे समय बाद अपने कोर समूह के साथ किसी सुरक्षित ठिकाने पर रुका हुआ था। सुरक्षा एजेंसियां इस बात की जांच कर रही हैं कि उसने ठहरने का फैसला क्यों लिया, जबकि वह हमेशा अपनी तेज़ मूवमेंट और जंगलों में गायब होने की कला के लिए बदनाम रहा।
कौन था माडवी हिडमा
माडवी हिडमा को नक्सल संगठन के सबसे सीक्रेटिव नेताओं में माना जाता था। उसके बारे में आधिकारिक रिकॉर्ड बहुत कम हैं, लेकिन जो भी जानकारी उपलब्ध है, वह बताती है कि:
- वह पीएलजीए बटालियन नंबर 1 का कमांडर था
- छत्तीसगढ़ के बस्तर, सुकमा और दंतेवाड़ा में हुई अनेक बड़ी वारदातों में उसका हाथ माना जाता है
- कई हमलों में सुरक्षा बलों के बड़े नुकसान की योजना उसी ने तैयार की
- उसकी पहचान इतनी गुप्त थी कि वर्षों तक उसकी तस्वीर तक पक्के तौर पर उपलब्ध नहीं थी
हिडमा के बारे में स्थानीय ग्रामीणों के अनुभव भी बताते हैं कि वह बेहद डर और दहशत का प्रतीक था। सुरक्षा बलों में उसका नाम सुनते ही किसी भी ऑपरेशन में अलग स्तर की तैयारी की जरूरत पड़ती थी।
क्यों माना जा रहा है इसे निर्णायक प्रहार
हालांकि नक्सल समस्या किसी एक नेता के खत्म हो जाने से ख़त्म नहीं होती, लेकिन हिडमा की मौत को निर्णायक मोड़ मानने के कई कारण हैं।
1. संगठन का सबसे महत्वपूर्ण सैन्य दिमाग खत्म हुआ
हिडमा को माओवादी सैन्य रणनीति का मुख्य चेहरा माना जाता था। कई हाई-प्रोफाइल हमले — जिनमें घात लगाकर किए गए हमले, IED बिछाना और जंगलों में सुरक्षा बलों को फंसाना शामिल था — उसकी योजना का नतीजा थे।
2. उसके साथ कोर टीम भी ढेर
उसकी दो पत्नियों और चार बॉडीगार्ड की मौत से स्पष्ट है कि उसके सबसे भरोसेमंद लोग भी खत्म हो गए। यह संगठन के आंतरिक ढांचे में बड़ा झटका है।
3. कई राज्यों में फैले नेटवर्क को नुकसान
हिडमा की पकड़ छत्तीसगढ़ के अलावा आंध्र और तेलंगाना तक फैली थी। वह अक्सर इन राज्यों की सीमा के जंगलों में घूमकर सुरक्षा एजेंसियों को चकमा देता था। उसकी मौत से यह पूरा नेटवर्क कमजोर पड़ा है।
4. आत्मसमर्पण की लहर तेज हो सकती है
पिछले एक महीने में छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था। हिडमा की मौत से यह लहर और तेज हो सकती है क्योंकि संगठन का मनोबल नीचे जाता दिख रहा है।
सुरक्षा एजेंसियों में राहत, लेकिन सतर्कता जारी
सुरक्षा बलों के वरिष्ठ अधिकारियों ने इसे “ऐतिहासिक सफलता” बताया है। कई राज्यों की संयुक्त कमांड ने लंबे समय से इस व्यक्ति की तलाश कर रही थी। एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि “हिडमा सिर्फ एक नाम नहीं था, वह पूरे संगठन की ख़तरनाक सैन्य सोच का प्रतीक था। उसकी मौत नक्सल लड़ाई के असंतुलन को बदल देगी।”
हालांकि एजेंसियों ने यह भी स्पष्ट किया है कि सतर्कता कम नहीं की जाएगी। यह आशंका है कि संगठन बदला लेने के लिए किसी बड़े हमले की कोशिश कर सकता है। इसलिए सभी नक्सल प्रभावित इलाकों में निगरानी बढ़ा दी गई है, खासकर बस्तर और सुकमा जैसे जिलों में।
क्षेत्रीय राजनीति और सामाजिक असर
नक्सल प्रभावित इलाकों में हिडमा का नाम वर्षों तक डर का पर्याय रहा है। उसकी मौत की खबर के बाद कई स्थानों पर लोगों ने राहत की सांस ली है। स्थानीय आदिवासी समुदायों में मिश्रित प्रतिक्रिया है — कुछ लोग उसकी क्रूरता से तंग थे, जबकि कुछ उसे ‘संगठन का बड़ा नेता’ मानकर देखते थे।
सरकार की ओर से अब दो तरह के प्रयास शुरू होंगे:
- सुरक्षा अभियानों को जारी रखना
- आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति को मजबूत करना
पिछले महीनों में जिस तरह से सैकड़ों नक्सली हथियार छोड़कर मुख्यधारा में लौटे हैं, उससे यह संकेत मिलता है कि ग्राउंड लेवल पर बदलाव संभव है।
आगे क्या
हिडमा की मौत के बाद सुरक्षा एजेंसियों की नजर अब उसके बाद दूसरे पंक्ति के नेताओं पर होगी। संगठन का शीर्ष नेतृत्व नई रणनीति बनाएगा, लेकिन इस समय उनकी ताकत पहले से काफी कमज़ोर हो चुकी है। यह भी देखा जा रहा है कि कई जिलों में नक्सलियों का प्रभाव लगातार घट रहा है और सरकार “नक्सल-मुक्त मध्यभारत” की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाना चाहती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आने वाले महीनों में सुरक्षा बल इसी तरह दबाव बनाए रखते हैं और पुनर्वास योजनाएं ईमानदारी से लागू होती हैं, तो नक्सलवाद के खिलाफ यह लड़ाई निर्णायक मोड़ पर पहुंच सकती है।
Facebook link – https://www.facebook.com/profile.php?id=61560912995040
सम्पर्क सूत्र: प्रिय मित्रों अगर आप हमारे साथ अपनी और आसपास की कहानियां या किस्से शेयर करना चाहते हैं तो हमारे कॉलिंग नंबर 96690 12493 पर कॉल कर या फिर thestorywindow1@gmail.com पर ईमेल के जरिए भेज सकते हैं। इसके अलावा आप अपनी बात को रिकॉर्ड करके भी हमसे शेयर कर सकते हैं। The Story Window के जरिए हम आपकी बात लोगों तक पहुंचाएंगे ।