शारदीय नवरात्रि का पर्व पूरे देश में भक्ति और श्रद्धा का रंग घोल देता है। इन नौ दिनों में हर जगह शक्ति की आराधना का माहौल बनता है। मध्य प्रदेश के सतना जिले से लगभग 45 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत की चोटी पर स्थित मां शारदा धाम मैहर इन दिनों भक्तों की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र बन जाता है। समुद्र तल से करीब 600 मीटर की ऊंचाई पर विराजमान यह शक्तिपीठ मां शारदा का एकमात्र मंदिर माना जाता है, जहाँ नवरात्रि पर लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
मैहर नाम की उत्पत्ति
किंवदंती है कि देवी सती का हार यहीं गिरा था और उसी कारण इस पावन स्थल का नाम ‘मैहर’ पड़ा, जिसका शाब्दिक अर्थ है मां का हार। इस नाम के पीछे छिपी आस्था और भावनाएं आज भी उतनी ही प्रबल हैं जितनी प्राचीन समय में थीं। माना जाता है कि जहां-जहां सती के अंग या आभूषण गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई और मैहर उन्हीं में से एक है। यही वजह है कि यह धाम केवल सतना जिले या बुंदेलखंड क्षेत्र तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे देशभर से लाखों श्रद्धालु यहां मां शारदा के दर्शन करने पहुंचते हैं। लोग मानते हैं कि मां के दरबार में पहुंचने से जीवन के संकट दूर होते हैं और नई ऊर्जा व शक्ति का संचार होता है। इस मान्यता ने मैहर को एक साधारण धार्मिक स्थल से उठाकर एक ऐसा आस्था केंद्र बना दिया है, जिसकी महिमा का गान हर भक्त करता है।
आल्हा-उदल और मां शारदा की कथा
लोक मान्यता के अनुसार, वीर आल्हा और उदल ने जंगलों के बीच इस मंदिर की खोज की थी। कहा जाता है कि आल्हा ने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या कर मां शारदा को प्रसन्न किया और उनसे अमरत्व का आशीर्वाद प्राप्त किया। आज भी यह विश्वास है कि हर रात मंदिर के कपाट खुलने से पहले मां का स्नान और श्रृंगार आल्हा स्वयं करते हैं। तभी सुबह 5 बजे मंदिर आम श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। यह परंपरा भक्तों की आस्था को और गहराई देती है।
मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
इतिहासकारों का मानना है कि मां शारदा धाम मैहर का अस्तित्व 6वीं शताब्दी से है। यह मंदिर न केवल अपनी प्राचीनता के कारण महत्वपूर्ण है, बल्कि इसलिए भी खास है क्योंकि यहां मां शारदा के साथ कई अन्य देवी-देवताओं की भी पूजा होती है। त्रिकूट पर्वत की चोटी पर विराजमान इस धाम में श्रद्धालु श्री काल भैरवी, भगवान हनुमान, देवी काली, दुर्गा, गौरी शंकर, शेष नाग, फूलमती माता, ब्रह्मदेव और जलापा देवी के भी दर्शन कर सकते हैं। एक ही स्थान पर इतनी विविधता भक्तों के लिए विशेष आध्यात्मिक अनुभव का अवसर प्रदान करती है।
साल 1951 में यहां 1080 सीढ़ियों का निर्माण कराया गया, जिससे भक्तों के लिए मंदिर तक पहुंचना पहले की तुलना में आसान हो गया। समय के साथ सुविधा बढ़ाने के लिए रोपवे की शुरुआत भी की गई, ताकि बुजुर्ग और दूर-दराज़ से आने वाले श्रद्धालु भी बिना कठिनाई के मां शारदा के दरबार तक पहुंच सकें। आज सीढ़ियों पर चढ़ने वाले भक्त जहां तपस्या और आस्था का अनुभव करते हैं, वहीं रोपवे से जाने वाले लोग इस धाम के भव्य प्राकृतिक दृश्य का आनंद लेते हैं। दोनों ही मार्ग मां शारदा की महिमा और भक्ति से भरे हुए हैं।
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नवरात्रि का मेला और आस्था
नवरात्रि के दिनों में यहां भव्य मेला लगता है। दूर-दराज़ से आने वाले भक्त मां के दरबार में नारियल, चुनरी, सिंदूर, पान-सुपारी, कपूर और श्रृंगार सामग्री अर्पित करते हैं। मान्यता है कि मां शारदा अपने दरबार में आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
मां शारदा धाम, मैहर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि आस्था, साहस और परंपराओं का जीवंत प्रतीक है। आल्हा-उदल की गाथाओं से जुड़ा यह धाम नवरात्रि में लाखों श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का केंद्र बन जाता है। मां शारदा की यह पावन नगरी वास्तव में भक्तों की श्रद्धा और संस्कृति का उज्ज्वल प्रतीक है।

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