Saffron Farming में हिमाचल के गौरव सबरवाल ने लहराया परचम, जीता लाख रुपए का इनाम

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भारत में केसर की खेती को लेकर गौरव सबरवाल का नाम तेजी से चर्चा में है। एरोपोनिक्स, एक नई और अनोखी तकनीक का इस्तेमाल करके, उन्होंने केसर की खेती (Saffron Farming) में क्रांतिकारी बदलाव किया है। यह तरीका न केवल जल की बचत करता है, बल्कि सैफ्रन जैसी नाजुक फसल को भी बिना मिट्टी के बढ़ने की अनूठी क्षमता प्रदान करता है। हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में गौरव की फार्म ने इस तकनीक को सफलतापूर्वक लागू किया है, जिससे इस क्षेत्र में सैफ्रन की खेती एक नई दिशा में बढ़ी है।हाल ही में शूलिनी सेफ्रॉन सोलन ने आईआईटी मंडी कैटेलिस्ट के बिल्ड फॉर हिमालयाज कार्यक्रम में पहला स्थान हासिल कर लिया है। इस जीत के साथ शूलिनी सेफ्रॉन ने एक लाख दस हजार रुपए का पुरस्कार भी अपने नाम कर लिया है। 

एरोपोनिक तकनीक से Saffron Farming का नया तरीका

गौरव सबरवाल ने पारंपरिक खेती के तरीकों को चुनौती दी और एरोपोनिक्स प्रणाली को अपनाया, जिसमें फसल को मिट्टी के बिना केवल नमी और हवा में उगाया जाता है। यह तकनीक पर्यावरण के अनुकूल है और इसमें जल का उपयोग न्यूनतम होता है, जो भारत के पानी की कमी से जूझ रहे इलाकों के लिए आदर्श है। गौरव का मानना है कि यह तकनीक न केवल सैफ्रन बल्कि अन्य कृषि उत्पादों के लिए भी फायदेमंद हो सकती है।

“एरोपोनिक्स से सैफ्रन की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। इसकी महक और स्वाद दोनों ही बेहतर हुए हैं,” गौरव कहते हैं। यह तकनीक न केवल सैफ्रन की उत्पादकता को बढ़ाती है, बल्कि इसे कीटनाशकों से मुक्त रखती है, जो आमतौर पर पारंपरिक खेती में उपयोग किए जाते हैं।

Saffron Farming

क्या है Aeroponic Technique?

गौरव एरोपोनिक तकनीक से केसर की खेती करते हैं। इस तकनीक में बंद कमरे में केसर को उगाते हैं। बंद कमरे में कश्मीर के वातावरण को बनाने की कोशिश करते हैं। ये तकनीक मिट्टी रहित होती है। इस तकनीक में रैक, ट्रै, चिलिंग डिवाइस, ह्यूमिडिटी फ़ायर, जैसे डिवाइस का इस्तेमाल होता है। इन डिवाइस से कमरे को कश्मीर जैसा वातावरण दिया जाता है।

Saffron Farming में गौरव की सफलता की कहानी

गौरव ने अपने फार्म शूलिनी सैफ्रन के माध्यम से सैफ्रन की खेती को एक नई पहचान दी है। उनकी फार्म से निकला सैफ्रन उच्च गुणवत्ता का है और इसे देशभर में विशेष रूप से उच्च मूल्य पर बेचा जाता है। पहले ही वर्ष में, उन्होंने 500 ग्राम सैफ्रन की उपज प्राप्त की, जिसे प्रति ग्राम ₹500 में बेचा गया। गौरव का कहना है कि एरोपोनिक प्रणाली ने उनकी फार्म को एक विशेष लाभ दिया है, जिससे उनके उत्पाद की गुणवत्ता में वृद्धि हुई है।

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Saffron Farming के किसान समुदाय पर प्रभाव

गौरव की सफलता केवल उनके फार्म तक ही सीमित नहीं रही। उन्होंने कई किसानों को इस तकनीक के बारे में प्रशिक्षित किया और उन्हें बताया कि किस तरह से एरोपोनिक्स को अपनाकर वे अपनी फसल की उपज बढ़ा सकते हैं और पानी की बचत कर सकते हैं। उनके फार्म को अब एक प्रशिक्षण केंद्र के रूप में उपयोग किया जा रहा है, जहां किसान इस नई तकनीक को सीखने आते हैं।

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“गौरव ने हमें दिखाया कि केसर की खेती को कैसे आधुनिक तकनीक से बेहतर बनाया जा सकता है। हमें अब पारंपरिक तरीके से नहीं, बल्कि नई सोच के साथ खेती करनी चाहिए,” एक किसान ने कहा, जो गौरव के साथ काम कर रहा है।

पर्यावरण पर सकारात्मक असर

गौरव का यह प्रोजेक्ट पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। पारंपरिक सैफ्रन खेती में मिट्टी की गुणवत्ता और जल की अधिक खपत होती है, जबकि एरोपोनिक्स में ये दोनों समस्याएं हल हो जाती हैं। गौरव का मानना है कि आने वाले वर्षों में इस तकनीक का विस्तार पूरे भारत में हो सकता है, जो कृषि क्षेत्र में बड़ा बदलाव ला सकता है।

Saffron Farming में चुनौतियां और भविष्य

हालांकि, गौरव का रास्ता आसान नहीं था। एरोपोनिक प्रणाली को स्थापित करना और सैफ्रन जैसी नाजुक फसल को इस प्रणाली में उगाना एक बड़ी चुनौती थी। साथ ही, नए तरीके को किसानों में लोकप्रिय बनाने में समय और प्रयास की आवश्यकता पड़ी। बावजूद इसके, गौरव का दृढ़ संकल्प और नयी सोच ने उन्हें सफलता दिलाई। अब वह इस तकनीक को और अधिक किसानों तक पहुंचाना चाहते हैं और सैफ्रन के उत्पादन को और बढ़ाना चाहते हैं।

“यह एक लंबा सफर था, लेकिन अब हम अपने प्रयासों को साझा करके अन्य किसानों की मदद करना चाहते हैं,” गौरव कहते हैं।

गौरव सबरवाल की कहानी सिर्फ एक किसान की सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह पूरी भारतीय कृषि व्यवस्था में बदलाव की उम्मीद का प्रतीक है। उनकी एरोपोनिक तकनीक न केवल सैफ्रन की गुणवत्ता को बढ़ाती है, बल्कि यह जल और संसाधनों की बचत के साथ किसानों को एक स्थिर और लाभकारी मार्ग भी प्रदान करती है। उनके इस प्रयास ने यह साबित कर दिया है कि तकनीकी नवाचारों के माध्यम से भारतीय कृषि को एक नई दिशा दी जा सकती है।

गौरव के इस मॉडल को देखते हुए अन्य किसान भी इस तकनीक को अपनाने की ओर बढ़ सकते हैं, जो भारतीय कृषि को एक समृद्ध और टिकाऊ भविष्य की ओर ले जाएगा।

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