भारत में कला और साहित्य कोने-कोने में मिल जाता है। कई लोगों ने विश्व में कला और साहित्य में अलग-अलग पहचान बनाई है। उन्हीं में से एक अयोध्या की नन्ही कवयित्री आद्विका भारद्वाज जिला अयोध्या के प्रतिष्ठित विद्यालय कनौसा कान्वेंट गर्ल्स इंटर कॉलेज के कक्षा 6वीं की छात्रा आद्विका भारद्वाज। वो अपनी छोटी सी उम्र में कविता लिखने और उसे मंचों पर प्रस्तुत करने में रुचि रखती हैं।
कविता सुनने वालों के मुंह से निकली है वाह
आद्विका जब मंच पर काव्य पाठ करती हैं तो दर्शकों के मुंह से बरबस ही निकल पड़ता है वाह भाई वाह! मात्र ग्यारह वर्ष की उम्र में देश और समाज के ऊपर बड़ी बड़ी कविताओं को लिखने के साथ ही उन्हें कंठस्थ करके सलीके के साथ मंच पर प्रस्तुत करती हैं।

अद्विका ने कई टीवी शो और मंचों पर किया काव्य पाठ
कई टीवी चैनलों पर काव्य पाठ करने के साथ ही अब तक कई विख्यात कवियों के सानिध्य में लगभग दो दर्जन से अधिक कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ कर चुकी। विभिन्न सामाजिक साहित्यिक और शैक्षणिक संस्थानों द्वारा इन्हें अब तक दो दर्जन से अधिक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।
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मां से मिलता है सपोर्ट
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दोस्तों आइए एक नजर डालते हैं आद्विका की कविताओं पर
(1)
देश की आजादी में महिला क्रांतिकारियों का योगदान
अल्पायु में ही शांति घोष व सुनीति चौधरी ने मजिस्ट्रेट स्टीवेंस पर गोली दागा था,
रानी अवंती बाई के पराक्रम से ब्रिटिश दुश्मन भी भागा था।
इंडियन रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हो कल्पना दत्त ने चटगांव शस्त्रागार को लूटा था,
राजसुख त्यागा रानी ईश्वरी बाई ने लेकिन बेगम हजरत महल का साथ नहीं छूटा था।
उदा देवी का शौर्य देख दुश्मन जनरल काल्विन ने हैट उतार सलाम किया,
पंजाब शेरनी गदरी गुलाबी कौर ने गदर पार्टी के वीरो को शस्त्र देकर संग्राम किया।
अनगिनत फांसी पर चढ़े, क्रूरतम अत्याचार का शिकार हजार हुए,
बहुतों ने सीने पर गोली खाई अनेक के पीठ पर वार हुए।
नई नवेली मांगो में रक्त सिंदूरी घोला था,
क्रांति पुत्रो का अप्रतिम शौर्य देख ब्रिटिश सिंहासन डोला था।
छिना सहारा अंतिम पन का झोपड़ी में घुट घुट कर कर रहती थीं ,
युवाओं के आदर्श चंद्रशेखर आजाद की मां एकांत में हर दुःख सहती थीं।
तब जाकर आजादी का हम सबने अमृतपान किया,
लागू हुआ संविधान और सच्चे अर्थों में राष्ट्रगान किया।
(2)
प्रभु श्री राम
व्रिशा, वैकर्तन, श्रीकौशल्यानंदन,
श्रीसीतावल्लभ, ककुत्स्थकुलनंदन ।
वैवस्वत मन्वंतर 23 वे चतुर्युग के त्रेता में लिया सूर्यवंश, इक्षवा कुल में अवतार,
विष्णु जी के सातवें रूप में आकर करना था पृथ्वी का उद्धार।
शांता पति ऋषि सृंगी ने पुत्रेष्टि यज्ञ संपन्न कराई,
यह वही शांता थीं जिनके प्रभुवर थे छोटे भाई।
देव, दनुज, नाग, किन्नर, गंधर किसी के बस की बात नही,
शिव, ब्रह्मा का वरद मिला था कोई दे सकता रावण को मात नही।
27वर्ष की आयु में वनवास पर निकल कर श्री राम ने,
संतों, आश्रमों,देश को राक्षसों, दैत्यों के आतंक से बचाया था।
आदिवासी, जनजाति, पहाड़ी, समुद्री लोगों के बीच सत्य, प्रेम, मर्यादा व सेवा का संदेश फैलाया था।
सात दिनों के सतत युद्ध में ली किसी ने न क्षण भर की राहत थी,
त्राहि त्राहि चहुंओर व्याप्त थी धरती पूरी आहत थी।
देवराज सारथी मताली श्री राम की सेवा में आया था,
मारा वाण नाभि में रावण के प्रभु ने अगस्त्य ऋषि जो पाया था।
भस्म हुई सोने की लंका,
मिली जगजननी की आभासी छाया।
राज्याभिषेक कर अयोध्या ने,
प्रभु के दर्शन पाया।
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शानदार काव्य पाठ करती हैं आद्विका