आज देश और दुनिया में पैगंबर साहब के जन्मदिन पर बड़ी धूमधाम से जुलूस निकाला जा रहा है। इसे पैगम्बर ए इस्लाम की आमद ईद-ए-मिलाद-उन-नबी (Eid Milad-Un-Nabi) भी कहा जाता है। कई लोग उसमें बढ़-चढ़ कर शिरकत कर रहे हैं। क्या आप को पता है कि कौन पैगम्बर मुहम्मद और क्या है उनके संदेश। दोस्तों आइए जानते है द स्टोरी विंडो पर प्रोफेसर इकबाल अली से।
पैगम्बर मुहम्मद का कहां हुआ जन्म?
आज पैगम्बर ए इस्लाम हजरत मुहम्मद की यौमे पैदाइश के अवसर पर सभी को दिली मुबारकबाद। अरब के मक्का में माहे रबी उल अव्वल का 12 तारीख को कुरैश खानदान में मुहम्मद साहब का जन्म हुआ था। मुहम्मद की वालिदा मोहतरमा आमना और वालिद अब्दुल्ला का साथ बचपन में ही छूट गया था। उनके दादा अब्दुल मुत्तलिब और चाचा अबू तालिब की निगरानी में यौवनावस्था में कदम रखा।
मुहम्मद साहब को कैसे मिला नबी का दर्जा ?
एकेश्वरवादी,सच्चाई , परोपकारी , निश्रातों लिए आश्रयदाता, बेटियों को भी जीने का अधिकार दिलाने वाले सदाचारी मोहम्मद साहब ने व्यापार को अपने जीवन-यापन का माध्यम बनाया। मुहम्मद साहब की शादी खदीजा से हुई। अपने जीवन के रोज के कामों से समय निकाल कर वो हमेशा अल्लाह की इबादत करते और इसके साथ ही प्रचार-प्रसार करते । उन्हें एकांत में ईश्वर को याद करने की धुन सवार थी। इस कारण मुहम्मद साहब को नबी का दर्ज़ा हासिल हुआ।
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मुहम्मद ने कुरान को क्यों कहा खास?
अधर्म का रास्ता छोड़कर धर्म के मार्ग पर बलिदान होने की शिक्षा देने वाले मुहम्मद साहब को इस्लाम धर्म के ग्रंथ ‘कुरान शरीफ’ में विश्व जगत की रहमत बताया गया है। वर्तमान में दुनिया के लगभग प्रत्येक हिस्से में इस्लाम धर्म के अन्तर्गत मुहम्मद साहब के अनुयायी विद्यमान है । तालीम, हुब्बल वतनी और पड़ोसी से अच्छे ताल्लुकात के हिमायती मुहम्मद साहब की सीरत वर्तमान में पूरी दुनिया के लिए अनुकरणीय और प्रासंगिक है। इस्लाम में मुस्लिम होकर मुहम्मद साहब की नसीहतों पर अमल करना ही सच्चे धार्मिक इंसान की पहचान है।
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मजहब में किन बातों से परहेज?
जिहाद, फतवा, कट्टरता और अपने हिसाब के मजहब की व्याख्या करना अल्पज्ञान की श्रेणी में खड़ा कर देता है। आज जब हम किसी आततायी और दहशत गर्द को गैर मजहबी कहते है अर्थात ” किसी भी आतंकवादी का कोई भी धर्म नहीं होता है” बार-बार कहते हैं फिर किसी व्यक्ति विशेष के काम को जाति,पंथ और धर्म के आधार से क्यों जोड़ते हैं? वास्तविक तालीम की कमी, गलत तर्जुमानी की पैरवी करने वाले धर्म के कैसे ठेकेदार हैं? आक्रांता, बेवजह कत्ल , दूसरे मजहब की आलोचना लूटपाट करना किसी धर्म में नहीं सिखाया जाता है। लेकिन ऐसा करने वाले ही अपने अधर्म का प्रदर्शन कर असामाजिक होने का दंभ भरते हैं।
मीडिया का गलत प्रयोग
प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के माध्यम से छोटी से छोटी घटना चंद मिनटों में जंगल में आग की तरह फैल जाती है। ऐसी स्थिति में नकारात्मक रवैया समाज को कई छोटे-छोटे तबकों में वर्गीकृत तो करता ही है बल्कि किसी भी धर्म विशेष के लिए उसकी यह भ्रांति बन जाती है । इस मजहब के लोग ही ऐसा क्यों करते हैं? आज जबकि सामाजिक समरसता की दुहाई देने वालों में सकारात्मकता का प्रतिशत अधिक है। किंतु उनकी खामोशी भी नकारात्मकता को बढ़ाती है।
पैगम्बर साहब की नजर से वास्तविक धर्म का उद्देश्य क्या है?
वास्तविक धर्म और मानवता को यदि हमें जीवन में चरितार्थ करना है तो खुद के धर्म और पंथ के बारे में पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना होगा क्योंकि प्रत्येक ईश्वरवादी अन्य धर्म की बुराई कर ही नहीं सकता मगर अफसोस यह है कि हम छिद्रान्वेषी होकर स्वयं का मंथन-चिंतन त्याग कर आस्तिक होकर भी नास्तिक की भीड़ का हिस्सा बनते हैं। ऐसा भी नहीं है कि सब खिलाफ है बल्कि हमें अपने किरदार को धार्मिक बनाना होगा। इसके साथ ही कट्टरता और अंधविश्वास वाले बीमार जेहन को त्यागकर सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए। इसके साथ ही खुद के धर्म की कसौटी पर उतरना चाहिए।
पैगम्बर साहब के मुताबिक क्या है अधर्म ?
आखिर ईश्वर कहां नहीं है, किसमें नहीं हैं? जरूरत इस बात की है हम जानने के साथ माने भी। विश्व शांति स्थापित करने के लिए स्वयंभू होने का भाव छोड़कर सभी को समुचित शिक्षा प्राप्त कर पीड़ित मानवता की सेवा के लिए आगे आना होगा तभी होगी धर्म की विजय और अधर्म का नाश । आइये सभी मिलकर गैर मजहबियों पर जुल्म करना, गाली देना बंद करें और सोचे कि गैर मजहबियों को बनाने वाला भी ईश्वर वही है जो हमारा भी ईश्वर है। अंत में हम सभी को अलग-अलग रास्तों से गुजर कर मृत्यु के दरवाजे से होकर उसी ईश्वर की शरण में पहुंचना है।
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