भारत में विविधताओं का समावेश है, जहां विभिन्न रीति-रिवाज और परंपराएं देखने को मिलती हैं। राजस्थान सरकार में डिप्टी सीएम दीया कुमारी ने शुक्रवार को जोधपुर के खेजड़ली शहीद मेले में शामिल हुईं। उन्होंने मां अमृता देवी शहीद स्मारक पहुंचकर 363 पर्यावरण के लिए बलिदान देने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके साथ ही उन्होंने गुरु जम्भेश्वर भगवान के मंदिर में पूजा अर्चना की एवं प्रदेश के खुशहाली के लिए कामना की।
डिप्टी सीएम दिया कुमारी ने की कई घोषणाएं
दीया कुमारी ने जनता को संबोधित करते हुए कहा कि गुरु जम्भेश्वर भगवान के आदर्शों पर चलकर बिश्नोई संप्रदाय पर्यावरण की रक्षा कर प्रकृति को बचाकर मानव सेवा के लिए कार्य कर रहा है। आगे उन्होंने कहा कि बजट घोषणा के अनुरूप हम मां अमृता देवी का भव्य स्मारक बनाएंगे। इसके साथ ही जोधपुर-खेजड़ली-जाडन फोर लेन सड़क मार्ग निर्माण की घोषणा की और कहा इस सड़क मार्ग का नाम ‘शहीद अमृता देवी बिश्नोई सड़क मार्ग’ होगा।
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खेजड़ी का मेला क्यों है खास?
भारत में मेलों का अपना अलग इतिहास है और इन मेलो के पीछे आपको कई कहानियां सुनने को मिलती है। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण और अनोखा मेला राजस्थान के जोधपुर में लगता है, जो पर्यावरण संरक्षण और शहादत की भावना से ओतप्रोत है जिसे जोधपुर का शहीद मेला कहा जाता है।

शहीद मेला भरने का क्या है कारण?
इस मेले की पीछे एक दिलचस्प कहानी है, जो लगभग 294 साल पहले की है। तब मारवाड़ जोधपुर के महाराजा अभय सिंह ने अपने नए महल निर्माण के लिए लकड़ियों की आवश्यकता थी। उन्होंने महल से 24 किलोमीटर दूर खेजड़ली गांव से पेड़ काटकर लकड़ी लाने का आदेश दिया। जब सैनिक खेजड़ली गांव पहुंचे और रामू खोड़ नामक व्यक्ति के घर के बाहर लगा खेजड़ी का पेड़ काटने लगे, बता दें खेजड़ी वृक्ष राजस्थान का प्रमुख वृक्ष है और ग्रामीणों की आय का जरिया भी है। जिसके चलते रामू की पत्नी अमृता देवी ने इस पेड़ के कटने का विरोध किया और पेड़ से जा चिपकी। लेकिन सैनिकों ने पेड़ काटना बंद नहीं किया और पेड़ सहित अमृता देवी को काट दिया। अमृता देवी के इस त्याग को देखते हुए गांव के लगभग 362 लोग भी पेड़ से जा चिपके और पेड़ों की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। जब महाराज अभय सिंह तक यह बात पहुंची, तो उन्होंने पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी और बिश्नोई समाज को यह वचन दिया कि मारवाड़ में कभी खेजड़ी का पेड़ नहीं काटा जाएगा। तभी से अमृता देवी और अन्य लोगों द्वारा दिए गए बलिदान की याद में हर साल जोधपुर के खेजड़ली में शहीद मेला लगता है।जो पर्यावरण संरक्षण और शहीदों के बलिदान को याद दिलाता है।
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खेजड़ली मेला कब भरता है?
खेजड़ली मेला हर साल भाद्रपद सुदी दशमी को भरता है। हर साल की तरह इस बार भी खेजड़ली गांव में 13 सितंबर को शहीदों की याद में मेला भरा, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से बिश्नोई समाज के लोग, संत, जनप्रतिनिधि, पर्यावरण प्रेमी, शहीद हुए इन तमाम लोगो को भावपूर्ण श्रद्धांजलि देने के लिए शामिल होंगे। वहीं मेले का मुख्य आकर्षण महिलाओं का सोने की जेबरातों से सजकर पहुंची है, जो समाज में महिला शक्ति को बढ़ावा देने और महिलाओं को बराबर का सम्मान देने का उदाहरण पेश करता है। इसी के साथ मेले में खेजड़ली गांव में बिश्नोई समाज के आराध्य जंभेश्वर भगवान के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा भी होगी, जिसके लिए समाज के लोगों ने लगभग 8 करोड़ 62 लाख रुपए की बोली लगाई है। यह मेला शहीदों को श्रद्धांजलि देने और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण आयोजन है।
इको टूरिज्म को मिलेगा बढ़ावा
राजस्थान सरकार ने इको टूरिज्म को बढ़ावा देने और पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा देने के लिए खेजड़ली गांव में एक अनोखी पहल की है। यहां अमृता देवी की प्रतिमा स्थापित की गई है। इस स्थल पर 363 शहीदों के नामों की सूची भी स्थापित की गई है, जो उनके बलिदान को याद दिलाती है। इसके अलावा, खेजड़ली बलिदान से जुड़ी पूरी घटना का पैनोरमा भी बनाया गया है, जो आगंतुकों को इस महत्वपूर्ण घटना के बारे में जानकारी प्रदान करता है। यह पहल न केवल इको टूरिज्म को बढ़ावा देगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता भी बढ़ाएगी। खेजड़ली गांव अब एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बन गया है, जहां लोग पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा ले सकते हैं और शहीदों के बलिदान को याद कर सकते हैं।
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