SCO समिट के बाद ट्रंप का यू-टर्न: मोदी को ‘हमेशा दोस्त’ कहा, व्यापार और चीन पर जारी खटास!

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नई दिल्ली: शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सक्रिय उपस्थिति और रूस-चीन के साथ बढ़ती तस्वीरों के बीच, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चौंकाने वाला बयान दिया। कुछ ही दिन पहले उन्होंने कहा था कि “भारत रूस और चीन के साथ खो गया है”, लेकिन अब ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी को “हमेशा दोस्त और महान नेता” बताते हुए अपने रुख में नरमी दिखाई है। यह यू-टर्न न केवल अमेरिकी राजनीति में हलचल मचा रहा है बल्कि भारत की रणनीतिक स्थिति को भी वैश्विक विमर्श का केंद्र बना रहा है।

ट्रंप के बदलते बयान: आलोचना से दोस्ती तक

ट्रंप की राजनीति अक्सर अप्रत्याशित रही है। कुछ हफ्ते पहले ही उन्होंने सार्वजनिक मंच पर भारत की रूस और चीन से नजदीकी पर चिंता जताई थी। ट्रंप ने कहा था कि भारत ने अमेरिका की जगह एशियाई ध्रुवों की ओर रुख कर लिया है और इससे अमेरिका-भारत के रिश्तों में दरार आ सकती है।
लेकिन SCO समिट के बाद अचानक उनका स्वर बदल गया। एक इंटरव्यू में उन्होंने मोदी को “हमेशा दोस्त” बताते हुए कहा कि भारत के साथ रिश्ते अमेरिका के लिए बेहद अहम हैं और मोदी “एक महान प्रधानमंत्री” हैं।

क्यों लिया ट्रंप ने यू-टर्न?

ट्रंप का यह यू-टर्न कई परतों में समझा जा सकता है।

  1. अमेरिकी राजनीति का दबाव:
    अमेरिकी चुनावी माहौल में ट्रंप भारतीय-अमेरिकी वोट बैंक को नज़रअंदाज नहीं कर सकते। भारत की बढ़ती वैश्विक ताकत और मोदी की लोकप्रियता को देखते हुए उनके लिए यह जरूरी था कि वे सकारात्मक संदेश दें।
  2. SCO की भू-राजनीतिक तस्वीर:
    समिट में भारत की मौजूदगी और मोदी की सक्रिय कूटनीति ने यह साफ कर दिया कि भारत सिर्फ रूस-चीन खेमे में नहीं है बल्कि बहुध्रुवीय दुनिया में अपनी स्वतंत्र पहचान बना रहा है। यही वजह है कि ट्रंप ने अपनी आलोचना को नरमी में बदल दिया।
  3. चीन फैक्टर:
    अमेरिका के लिए चीन सबसे बड़ी चुनौती है। ऐसे में भारत को पूरी तरह खो देना रणनीतिक रूप से घाटे का सौदा होता। ट्रंप को शायद एहसास हुआ कि चीन को बैलेंस करने के लिए भारत के साथ रिश्ता मजबूत करना जरूरी है।

SCO में भारत की भूमिका

इस बार के SCO समिट में भारत ने कई संकेत दिए। मोदी ने मंच से आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख जताया और क्षेत्रीय सहयोग की बात की। साथ ही, रूस और चीन के नेताओं के साथ उनकी मुलाकातों की तस्वीरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छा गईं।
भारत ने यह दिखाया कि वह किसी एक ध्रुव पर झुकने के बजाय सभी वैश्विक ताकतों के साथ संतुलन बनाकर चलना चाहता है। यही स्वतंत्र विदेश नीति अमेरिकी दबाव को चुनौती देती है।

अमेरिका-भारत व्यापार विवाद

हालांकि ट्रंप ने मोदी को दोस्त कहा है, लेकिन व्यापारिक रिश्तों में खटास अभी भी बनी हुई है। अमेरिकी कंपनियां भारत में निवेश की जटिलताओं की शिकायत करती हैं और भारत अमेरिकी आयात शुल्क पर सवाल उठाता रहा है।
ट्रंप के पिछले कार्यकाल में टैरिफ युद्ध कई बार सुर्खियों में रहा। उन्होंने भारत को “टैरिफ किंग” तक कहा था। यह बयानबाजी आज भी भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों पर छाया डालती है।

क्या बदलेगा अमेरिका-भारत रिश्ता?

ट्रंप के ताजा बयान से साफ है कि वे भारत से दूरी नहीं बनाना चाहते। अगर वे भविष्य में दोबारा सत्ता में आते हैं, तो व्यापारिक टकराव के बावजूद रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे।
क्वाड (Quad) और हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा अमेरिका के लिए अहम मुद्दे हैं। यहां भारत की भूमिका निर्णायक है। यही कारण है कि ट्रंप और उनके सहयोगी भारत के साथ संवाद बनाए रखने के लिए मजबूर हैं।

चीन पर जारी खटास

भारत और अमेरिका, दोनों के लिए चीन साझा चुनौती है। भारत के लिए यह चुनौती सीमा विवाद और क्षेत्रीय प्रभाव की है, वहीं अमेरिका के लिए यह आर्थिक और सैन्य प्रभुत्व की।
SCO में चीन की मौजूदगी के बीच भारत ने स्पष्ट किया कि वह सिर्फ दर्शक नहीं है बल्कि सक्रिय खिलाड़ी है। ट्रंप के यू-टर्न में यही चिंता झलकती है कि कहीं चीन को फायदा न मिल जाए।

भू-राजनीतिक असर

ट्रंप के बयान का असर केवल अमेरिका-भारत संबंधों पर नहीं बल्कि पूरे एशिया की राजनीति पर पड़ेगा।

  • रूस: भारत की रूस के साथ करीबी पर अमेरिका की चिंता बनी रहेगी, लेकिन ट्रंप का नरम स्वर संकेत है कि वॉशिंगटन अब नई रणनीति बनाने की कोशिश करेगा।
  • यूरोप: यूरोपीय देश भारत को स्थिर साझेदार मानते हैं। ट्रंप की यह टिप्पणी उन्हें भी संदेश देती है कि भारत को लेकर अमेरिका का रुख पूरी तरह नकारात्मक नहीं है।
  • दक्षिण एशिया: पाकिस्तान जैसे देशों पर भी इसका असर होगा। भारत की बढ़ती ताकत और अमेरिका की स्वीकारोक्ति से पाकिस्तान की स्थिति और कमजोर पड़ सकती है।

भारत की रणनीतिक बढ़त

मोदी सरकार ने पिछले कुछ सालों में यह रणनीति अपनाई है कि भारत न तो अमेरिका पर पूरी तरह निर्भर रहेगा और न ही रूस-चीन के साथ अंधी दोस्ती करेगा। यही ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ भारत की सबसे बड़ी ताकत है।
ट्रंप का यू-टर्न इस बात का सबूत है कि भारत की इस नीति का असर दिख रहा है और दुनिया भारत को नजरअंदाज नहीं कर सकती.

डोनाल्ड ट्रंप का यह पलटा हुआ बयान केवल उनकी राजनीतिक शैली का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह वैश्विक शक्ति संतुलन की बदलती तस्वीर भी दिखाता है। भारत आज न तो किसी एक ध्रुव का हिस्सा है और न ही दबाव में झुकने वाला देश।
SCO समिट ने यह संदेश दिया कि भारत बहुध्रुवीय दुनिया का एक अहम स्तंभ है। यही कारण है कि अमेरिका जैसे बड़े खिलाड़ी भी आलोचना के बाद दोस्ती का हाथ बढ़ाने को मजबूर हैं।
आगे सवाल यह है कि क्या यह नरमी स्थायी होगी या चुनावी राजनीति का हिस्सा बनकर गायब हो जाएगी? फिलहाल इतना साफ है कि भारत की स्थिति पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो चुकी है और दुनिया को उसके साथ तालमेल बैठाना ही होगा।

Author: Akshay Srivastava

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