SCO शिखर सम्मेलन 2025: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन इस बार कई मायनों में अहम रहा। सम्मेलन में शामिल आठ स्थायी सदस्य देशों में भारत, चीन, रूस और पाकिस्तान की मौजूदगी ने इसे विशेष रूप से चर्चित बना दिया। हालाँकि एजेंडे में ऊर्जा सहयोग, आतंकवाद-रोधी रणनीति, क्षेत्रीय सुरक्षा और कनेक्टिविटी जैसे मुद्दे भी शामिल थे, लेकिन असल बहस अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और भारत-चीन रिश्तों पर केंद्रित रही।
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध की गूंज
पिछले एक साल से अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ता ही जा रहा है। अमेरिका ने चीनी तकनीकी कंपनियों पर कई तरह के टैरिफ और प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे वैश्विक सप्लाई चेन पर असर पड़ रहा है।
SCO शिखर सम्मेलन 2025 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सीधे अमेरिका पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “संरक्षणवाद और एकतरफ़ा प्रतिबंध दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए ज़हर हैं। हमें मिलकर ऐसे कदमों का विरोध करना चाहिए और एशिया को नए विकास के रास्ते पर ले जाना चाहिए। SCO देशों को डॉलर पर निर्भरता कम करनी होगी और अपनी स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देना होगा।”
चीन का यह प्रस्ताव रूस को भी भाया। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका पर सीधे निशाना साधते हुए कहा कि “विश्व को अब बहुध्रुवीय आर्थिक व्यवस्था की ओर बढ़ना चाहिए। एशिया के देशों को अपनी ताकत पहचाननी होगी और सहयोग को मज़बूत करना होगा।”
भारत का सतर्क रुख
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मेलन में हिस्सा लेते हुए संतुलित रुख़ अपनाया। उन्होंने अमेरिका या चीन का नाम लिए बिना कहा, “वैश्विक अर्थव्यवस्था में किसी एकतरफ़ा कदम से अस्थिरता आती है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि व्यापार नियमों पर आधारित, खुला और पारदर्शी बना रहे। भारत का मानना है कि पारस्परिक सम्मान और समान भागीदारी ही दीर्घकालिक सहयोग की नींव है।”
मोदी ने भारत-चीन संबंधों का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि “सीमा पर शांति और स्थिरता ही द्विपक्षीय रिश्तों के लिए बुनियादी शर्त है। जब तक विश्वास और आपसी सम्मान नहीं होगा, तब तक बड़े लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा।” उनका यह बयान साफ इशारा था कि भारत चीन से उम्मीद करता है कि वह सीमा विवाद को सुलझाने की दिशा में ईमानदारी दिखाए।
ऑपरेशन सिंदूर का ज़िक्र
सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में सम्पन्न हुए ऑपरेशन सिंदूर का उल्लेख किया। यह भारतीय नौसेना द्वारा अगस्त 2025 में पश्चिम एशिया में चलाया गया मानवीय अभियान था, जिसके तहत सैकड़ों भारतीय नागरिकों और अन्य देशों के लोगों को संकटग्रस्त क्षेत्रों से सुरक्षित निकाला गया। मोदी ने कहा कि “भारत मानवीय संकटों में हमेशा आगे रहा है। ऑपरेशन सिंदूर हमारी क्षमताओं और प्रतिबद्धता का ताज़ा उदाहरण है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि SCO देशों को केवल सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों पर ही नहीं, बल्कि मानवीय संकटों के दौरान सहयोग पर भी ध्यान देना चाहिए। मोदी के इस बयान की रूस और मध्य एशियाई देशों ने सराहना की। चीन ने भी इसे “क्षेत्रीय स्थिरता के लिए सकारात्मक योगदान” कहा।
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पाकिस्तान की स्थिति
पाकिस्तान ने सम्मेलन में चीन का साथ दिया और अमेरिका की नीतियों को “दुनिया को बाँटने वाली” करार दिया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा कि CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) क्षेत्रीय विकास के लिए एक मॉडल है और SCO देशों को इस तरह की परियोजनाओं से जुड़ना चाहिए। भारत ने हालांकि इस मुद्दे पर चुप्पी साधी, क्योंकि CPEC का एक हिस्सा पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है, जिस पर भारत आपत्ति जताता रहा है।
ऊर्जा और सुरक्षा पर चर्चा
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और भारत-चीन रिश्तों के अलावा सम्मेलन में ऊर्जा सहयोग और आतंकवाद-रोधी रणनीति पर भी विचार-विमर्श हुआ। मध्य एशिया के देश कजाख़स्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान ने साझा ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश बढ़ाने की मांग की। वहीं अफगानिस्तान की स्थिति को लेकर भी चर्चा हुई। सभी सदस्य देशों ने माना कि स्थिर अफगानिस्तान पूरे क्षेत्र की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है।
आतंकवाद के खिलाफ़ संयुक्त प्रयासों पर एक साझा बयान जारी किया गया, जिसमें सीमा-पार आतंकवाद को रोकने और चरमपंथी संगठनों की फंडिंग पर नकेल कसने की बात कही गई। भारत ने इस मुद्दे पर पाकिस्तान की ओर इशारा किया लेकिन सीधे नाम नहीं लिया।
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रूस की कूटनीतिक संतुलनकारी भूमिका
इस पूरे सम्मेलन में रूस ने संतुलन साधने की भूमिका निभाई। एक तरफ वह चीन के साथ अमेरिकी नीतियों का विरोध करता दिखा, दूसरी तरफ भारत की चिंताओं को भी गंभीरता से लिया। पुतिन ने कहा कि “SCO को सिर्फ बयानबाज़ी का मंच नहीं बनना चाहिए बल्कि ठोस आर्थिक और रणनीतिक कदम उठाने चाहिए।”
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भविष्य की राह
सम्मेलन के अंत में जारी संयुक्त घोषणा पत्र में यह कहा गया कि सदस्य देश बहुध्रुवीय दुनिया के निर्माण के लिए सहयोग बढ़ाएँगे, क्षेत्रीय सुरक्षा पर मिलकर काम करेंगे और आर्थिक साझेदारी को नए स्तर तक ले जाएँगे। लेकिन घोषणा पत्र में भारत-चीन विवाद या अमेरिका-चीन तनाव पर कोई सीधा ज़िक्र नहीं किया गया।
हालाँकि सम्मेलन के बाद भी यह सवाल बना रहा कि क्या SCO वास्तव में बड़े भू-राजनीतिक विवादों को सुलझाने का मंच बन पाएगा या यह सिर्फ बयानबाज़ी तक ही सीमित रहेगा। भारत और चीन के बीच तनाव अभी भी जस का तस है। पाकिस्तान-भारत संबंधों में सुधार की गुंजाइश भी कम ही दिखी।
फिर भी इतना तय है कि अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापार युद्ध ने एशियाई देशों को नए विकल्प तलाशने पर मजबूर कर दिया है। भारत इस बीच एक मुश्किल स्थिति में है, जहाँ उसे अमेरिका के साथ अपने साझेदारी संबंधों को भी मज़बूत रखना है और चीन के साथ सहयोग के रास्ते भी खुले रखने हैं।
ताशकंद में सम्पन्न SCO शिखर सम्मेलन 2025 ने यह स्पष्ट कर दिया कि आने वाले समय में वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में एशिया की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होगी। अमेरिका की नीतियों से असंतोष, चीन और रूस की नज़दीकी, भारत की सतर्क रणनीति, पाकिस्तान का चीन-समर्थक रुख़ और ऑपरेशन सिंदूर जैसे मानवीय अभियानों की झलक—ये सभी बातें आने वाले वर्षों की दिशा तय करेंगी।
एशियाई देशों के लिए यह अवसर है कि वे आपसी मतभेदों को पीछे छोड़कर साझा भविष्य की ओर कदम बढ़ाएँ। लेकिन ज़मीन पर हालात और देशों के आपसी हित इस राह को आसान नहीं बनने देंगे। यही वजह है कि SCO शिखर सम्मेलन 2025 एक तरफ़ उम्मीदें जगाता है, तो दूसरी तरफ़ चुनौतियों की गहरी याद भी दिलाता है।
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