भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती: केंद्र सरकार का ऐलान सराय काले खां आईएसबीटी चौक का नाम अब ‘बिरसा मुंडा चौक’

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महान स्वतंत्रता सेनानी और जननायक भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए दिल्ली के सराय कालेखां आईएसबीटी चौक का नाम बदलकर ‘बिरसा मुंडा चौक’ करने का ऐलान किया है। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने चौक का नाम बदलने का ऐलान किया है। यह निर्णय उनके योगदान और संघर्ष को सम्मान देने के लिए लिया गया है, और इसे आदिवासी समुदाय के प्रति सरकार की श्रद्धांजलि के रूप में देखा जा रहा है।

सराय कालेखां आईएसबीटी चौक का नामकरण

सराय कालेखां आईएसबीटी चौक का नाम ‘बिरसा मुंडा चौक’ रखने का निर्णय एक ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक कदम है, जो उनके संघर्ष और उनके योगदान को याद रखने का तरीका है। यह नाम परिवर्तन न केवल आदिवासी समुदाय की संस्कृति और उनकी धरोहर को सम्मानित करता है, बल्कि यह देशभर में उनके योगदान को उजागर करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

इस नामकरण के साथ, यह सुनिश्चित किया जाएगा कि आने वाली पीढ़ियां भगवान बिरसा मुंडा के योगदान को पहचानें और उनके साहसिक कार्यों से प्रेरित हों। यह एक सम्मानजनक पहल है, जो उनकी महानता को हमारे समाज में जीवित रखने के लिए आवश्यक है।

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भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती

भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को झारखंड के उलीहातू गांव में हुआ था। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ वीरता से संघर्ष किया और आदिवासी समुदाय को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया। बिरसा मुंडा को आदिवासी समाज में ‘धनकुम्भा’ यानी धरती का भगवान माना जाता है, और उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उनका नेतृत्व ‘उलगुलान’ (मूलवासी विद्रोह) में था, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को हिला दिया था।

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सरकार का क्या है दृष्टिकोण?

केंद्र सरकार का यह कदम आदिवासी समुदाय के प्रति सम्मान और उनके अधिकारों के लिए उनके संघर्ष के महत्व को रेखांकित करता है। यह कदम सिर्फ एक नाम परिवर्तन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज को भगवान बिरसा मुंडा के योगदान के प्रति जागरूक करने की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है। इस पहल के माध्यम से सरकार ने यह संदेश दिया है कि आदिवासी समाज की समृद्ध संस्कृति, उनके संघर्ष और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए वह प्रतिबद्ध है।

बिरसा मुंडा का संघर्ष

बिरसा मुंडा का संघर्ष अंग्रेजों के खिलाफ था, जिन्होंने आदिवासी इलाकों को अपने साम्राज्य का हिस्सा बना लिया था। उन्होंने “उलगुलान” (मूलवासी विद्रोह) का नेतृत्व किया, जिसका उद्देश्य आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा और अंग्रेजी शासन के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन खड़ा करना था। बिरसा मुंडा ने आदिवासियों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए कई आंदोलन और संगठन बनाए, जिनमें मूलवासी आंदोलन और धार्मिक सुधार आंदोलन प्रमुख थे।उन्होंने आदिवासियों को धर्म, संस्कृति और उनकी सामाजिक स्थिति के बारे में समझाया और बताया कि वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करें। उनका नारा था “अबुआ राज, अबुआ रजा” (हमारा राज, हमारा राजा)। उनके नेतृत्व में आदिवासी समाज ने अंग्रेजों के खिलाफ कई बार हथियार उठाए, जिससे ब्रिटिश शासन को एक मजबूत चुनौती मिली।

बिरसा मुंडा की धरोहर

बिरसा मुंडा ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, बल्कि उन्होंने अपने समाज में एक नई जागरूकता भी पैदा की। उन्होंने आदिवासी समुदाय में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुधारों के लिए काम किया। उनकी विचारधारा आज भी झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और बिहार के आदिवासी इलाकों में जीवित है।बिरसा मुंडा का योगदान केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तक सीमित नहीं है, बल्कि उनका आदिवासी अधिकारों और संस्कृति के लिए संघर्ष एक महान प्रेरणा है। उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि एक व्यक्ति जब अपने उद्देश्य के प्रति संकल्पित होता है, तो वह समाज में बदलाव ला सकता है।

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